श्रेणीबद्ध: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"><strong> स्वर्ग सम्बंधी स्वर्गविमान </strong></p> | |||
<p class="HindiText">देवों के चार भेदों में एक वैमानिक देव नाम का भेद है। ये लोग ऊर्ध्वलोक के स्वर्ग विमानों में रहते हैं तथा बड़ी विभूति व ऋद्धि आदि को धारण करने वाले होते हैं। उनके रहने का सब स्थान स्वर्ग कहलाता है। इसमें इंद्रक, श्रेणीबद्ध व प्रकीर्णक आदि विमानों की रचना है। </p><br> | |||
<p class="HindiText"><strong> नरक सम्बंधी बिल </strong></p> | |||
<span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/2/28,36</span> <span class="PrakritGatha">सत्तमखिदिबहुमज्झे बिलाणि सेसेसु अप्पबहुलं तं। उवरिं हेट्ठे जोयणसहस्समुज्झिय हवंति पडलकमे।28। इंदयसेढी बद्धा पइण्णया य हवंति तिवियप्पा। ते सव्वे णिरयबिला दारुण दुक्खाणं संजणणा।36। </span>=<span class="HindiText">सातवीं पृथिवी के तो ठीक मध्य भाग में ही नारकियों के बिल हैं। परंतु ऊपर अब्बहुलभाग पर्यंत शेष छह पृथिवियों में नीचे व ऊपर एक-एक हजार योजन छोड़कर पटलों के क्रम से नारकियों के बिल हैं।28। वे नारकियों के बिल, इंद्रक, श्रेणी बद्ध और प्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं। ये सब ही बिल नारकियों को भयानक दु:ख दिया करते हैं।36।</span> | |||
<p class="HindiText">इनकी संख्या, अवस्थान, विस्तार के बारे में अधिक जानकारी के लिये देखें - बिल[[ नरक#5.3 | नरक - 5.3]]; स्वर्गविमान - देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]।</p><br> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 8: | Line 16: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: श]] | [[Category: श]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 18:00, 4 December 2022
स्वर्ग सम्बंधी स्वर्गविमान
देवों के चार भेदों में एक वैमानिक देव नाम का भेद है। ये लोग ऊर्ध्वलोक के स्वर्ग विमानों में रहते हैं तथा बड़ी विभूति व ऋद्धि आदि को धारण करने वाले होते हैं। उनके रहने का सब स्थान स्वर्ग कहलाता है। इसमें इंद्रक, श्रेणीबद्ध व प्रकीर्णक आदि विमानों की रचना है।
नरक सम्बंधी बिल
तिलोयपण्णत्ति/2/28,36 सत्तमखिदिबहुमज्झे बिलाणि सेसेसु अप्पबहुलं तं। उवरिं हेट्ठे जोयणसहस्समुज्झिय हवंति पडलकमे।28। इंदयसेढी बद्धा पइण्णया य हवंति तिवियप्पा। ते सव्वे णिरयबिला दारुण दुक्खाणं संजणणा।36। =सातवीं पृथिवी के तो ठीक मध्य भाग में ही नारकियों के बिल हैं। परंतु ऊपर अब्बहुलभाग पर्यंत शेष छह पृथिवियों में नीचे व ऊपर एक-एक हजार योजन छोड़कर पटलों के क्रम से नारकियों के बिल हैं।28। वे नारकियों के बिल, इंद्रक, श्रेणी बद्ध और प्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं। ये सब ही बिल नारकियों को भयानक दु:ख दिया करते हैं।36।
इनकी संख्या, अवस्थान, विस्तार के बारे में अधिक जानकारी के लिये देखें - बिल नरक - 5.3; स्वर्गविमान - देखें स्वर्ग - 5.3।