सो ज्ञाता मेरे मन माना, जिन निज-निज पर पर जाना: Difference between revisions
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Latest revision as of 22:57, 15 February 2008
सो ज्ञाता मेरे मन माना, जिन निज-निज पर पर जाना
छहौं दरबतैं भिन्न जानकै, नव तत्वनितैं आना ।
ताकौं देखै ताकौं जाने, ताहीके रसमें साना ।।१ ।।
कर्म शुभाशुभ जो आवत हैं, सो तो पर पहिचाना ।
तीन भवन को राज न चाहै, यद्यपि गांठ दरब बहु ना ।।२ ।।
अखय अनन्ती सम्पति विलसै, भव-तन-भोग-मगन ना ।
`द्यानत' ता ऊपर बलिहारी, सोई `जीवन मुकत' भना ।।३ ।।