दुर्गंधा: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> चंपा नगरी के धनिक वैश्य सुबंधु और उसकी पत्नी धनदेवी की कन्या इसका शरीर दुर्गंधित था इसलिए यह इस नाम से प्रसिद्ध हुई । इसी नगर के निर्धन धनदेव के पुत्र जिनदेव के साथ इसका विवाह करना निश्चित हुआ । इधर जिनदेव इसके साध अपने विवाह की चर्चा सुनकर घर से निकल गया तथा उसने समाधिगुप्त मुनि से धर्मोपदेश सुनकर मुनि-व्रत धारण कर लिया । इसके पिता सुबंधु ने जिनदेव के व्रती होने पर जिनदेव के भाई जिनदत्त से इसका विवाह किया किंतु इसकी देह से उत्पन्न दुर्गंध को न सह सका और वह भी कहीं अन्यत्र चला गया । इसके पश्चात् माँ की शिक्षा के अनुसार इसने संयम धारण कर लिया । तीव्र तप तपती और परीषह सहती हुई यह विहार करने लगी । एक दिन इसने वसंत-सेना नामक वेश्या को जार पुरुषों के साथ वन में देखकर प्रथम तो इसने वेश्या होने का निदान किया किंतु बाद में इसने स्वयं को धिक्कारा और अपने संचित दुष्कर्मों के नाश की प्रार्थना की । आयु की समाप्ति पर प्राण त्याग कर यह अच्युत स्वर्ग में देवी हुई । <span class="GRef"> पांडवपुराण 24.24-46, 64-71 </span></p> | |||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पांडवपुराण/24/ श्लोक–सुबंधी नामक वैश्य की पुत्री थी (24-25)। इसके स्वाभाविक दुर्गंध के कारण इसका पति जिनदत्त इसे छोड़कर भाग गया (42-44)। पीछे आर्यिकाओं को आहार दिया तथा उनसे दीक्षा धारण कर ली (64-67)। घोर तपकर अंत में अच्युत स्वर्ग में देव हुई (68-71)। यह द्रौपदी का पूर्व का दूसरा भव है।–देखें द्रौपदी ।
पुराणकोष से
चंपा नगरी के धनिक वैश्य सुबंधु और उसकी पत्नी धनदेवी की कन्या इसका शरीर दुर्गंधित था इसलिए यह इस नाम से प्रसिद्ध हुई । इसी नगर के निर्धन धनदेव के पुत्र जिनदेव के साथ इसका विवाह करना निश्चित हुआ । इधर जिनदेव इसके साध अपने विवाह की चर्चा सुनकर घर से निकल गया तथा उसने समाधिगुप्त मुनि से धर्मोपदेश सुनकर मुनि-व्रत धारण कर लिया । इसके पिता सुबंधु ने जिनदेव के व्रती होने पर जिनदेव के भाई जिनदत्त से इसका विवाह किया किंतु इसकी देह से उत्पन्न दुर्गंध को न सह सका और वह भी कहीं अन्यत्र चला गया । इसके पश्चात् माँ की शिक्षा के अनुसार इसने संयम धारण कर लिया । तीव्र तप तपती और परीषह सहती हुई यह विहार करने लगी । एक दिन इसने वसंत-सेना नामक वेश्या को जार पुरुषों के साथ वन में देखकर प्रथम तो इसने वेश्या होने का निदान किया किंतु बाद में इसने स्वयं को धिक्कारा और अपने संचित दुष्कर्मों के नाश की प्रार्थना की । आयु की समाप्ति पर प्राण त्याग कर यह अच्युत स्वर्ग में देवी हुई । पांडवपुराण 24.24-46, 64-71