हैमवत: Difference between revisions
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<span class="HindiText">पहले भारतवर्ष का ही दूसरा नाम रहा है। यथा - </span><span class="SanskritText">इमं हैमवतं वर्षं भारतं नाम विश्रुतम् । (मत्स्य/112/28)</span> =<span class="HindiText">आगे चलकर वह स्वतन्त्र एक वर्ष मान लिया गया है। यथा - </span><span class="SanskritText">इदं तु भारतं वर्षं ततो हैमवतं परम् । (भारत भीष्म/6/7); ( | <span class="HindiText">पहले भारतवर्ष का ही दूसरा नाम रहा है। यथा - </span><span class="SanskritText">इमं हैमवतं वर्षं भारतं नाम विश्रुतम् । (मत्स्य/112/28)</span> =<span class="HindiText">आगे चलकर वह स्वतन्त्र एक वर्ष मान लिया गया है। यथा - </span><span class="SanskritText">इदं तु भारतं वर्षं ततो हैमवतं परम् । (भारत भीष्म/6/7); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ प्र./142 A.N.Up.)।</span></li> | ||
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<span class="SanskritText"> | <span class="SanskritText"> राजवार्तिक/3/10/5/172/17 हिमवन्नाम पर्वत: तस्यादूरभव: सोऽस्मिन्नस्तीति वाणि सति हैमवतो वर्ष:।</span> =<span class="HindiText">[अढाई द्वीपों में स्थित प्रसिद्ध द्वितीय क्षेत्र है] हिमवान् नाम के पर्वत के पास का क्षेत्र, या जिसमें हिमवान् पर्वत है वह हैमवत है। </span></li> | ||
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<span class="HindiText">हैमवत इस क्षेत्र का अवस्थान व विस्तारादि - देखें [[ लोक#3.3 | लोक - 3.3]]; </span></li> | <span class="HindiText">हैमवत इस क्षेत्र का अवस्थान व विस्तारादि - देखें [[ लोक#3.3 | लोक - 3.3]]; </span></li> |
Revision as of 19:17, 17 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- पहले भारतवर्ष का ही दूसरा नाम रहा है। यथा - इमं हैमवतं वर्षं भारतं नाम विश्रुतम् । (मत्स्य/112/28) =आगे चलकर वह स्वतन्त्र एक वर्ष मान लिया गया है। यथा - इदं तु भारतं वर्षं ततो हैमवतं परम् । (भारत भीष्म/6/7); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ प्र./142 A.N.Up.)।
- राजवार्तिक/3/10/5/172/17 हिमवन्नाम पर्वत: तस्यादूरभव: सोऽस्मिन्नस्तीति वाणि सति हैमवतो वर्ष:। =[अढाई द्वीपों में स्थित प्रसिद्ध द्वितीय क्षेत्र है] हिमवान् नाम के पर्वत के पास का क्षेत्र, या जिसमें हिमवान् पर्वत है वह हैमवत है।
- हैमवत इस क्षेत्र का अवस्थान व विस्तारादि - देखें लोक - 3.3;
- हैमवत क्षेत्र में काल वर्तनादि सम्बन्धी - देखें काल ;
- हिमवान् पर्वत पर स्थित एक कूट व देव - देखें लोक - 5.4;
- महाहिमवान् पर्वतस्थ कूट व उसका स्वामी देव - देखें लोक - 5.4;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
छ: कुलाचलों से विभाजित सात क्षेत्रों में दूसरा क्षेत्र । इसका विस्तार 2105 5/19 योजन है । महापुराण 63.191, पद्मपुराण 105.159-160, हरिवंशपुराण 5.13-14 देखें क्षेत्र