ग्राम: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Revision as of 16:22, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
( तिलोयपण्णत्ति/4/1398 ) वइपरिवेढो गामो।=वृत्ति (बाड़) से वेष्टित ग्राम होता है।
( धवला 13/5,5,64/336/3 ) ( त्रिलोकसार/676 )। महापुराण/16/164-166 ग्रामवृत्तिपरिक्षेपमात्रा: स्युरुचिता श्रिया:। शूद्रकर्षकभूयिष्ठा: सारामा: सजलाशया:।164। ग्रामा: कुलशतेनेष्ठो निकृष्ट: समधिष्ठित:। परस्तत्पच्चशत्या स्यात् सुसमृद्धकृषीबल:।165। क्रोशद्विक्रोशसीमानो ग्रामा: स्युरधमोत्तमा:। संपन्नसस्यसुक्षेत्रा: प्रभूतयवसोदका:।166।=जिसमें बाढ़ से घिरे हुए घर हों, जिसमें अधिकतर शूद्र और किसान लोग रहते हों, तथा जो बगीचा और तालाबों से सहित हों, उन्हें ग्राम कहते हैं।164। जिसमें सौ घर हों उसे छोटा गाँव तथा जिसमें 500 घर हों और जिसके किसान धन संपन्न हों उसे बड़ा गाँव कहते हैं।165। छोटे गाँव की सीमा एक कोस की और बड़े गाँव की सीमा दो कोस की होती है।166।
पुराणकोष से
(1) बाड़ आवृत, उद्यान और जलाशयों से युक्त अधिकतर शूद्र और कृषकों की निवासभूमि । इसके दो भेद होते हैं― छोटे ग्राम और बड़े ग्राम । छोटे ग्राम की सीमा एक कोस और बड़े ग्राम की दो कोस होती है । छोटे ग्राम में सौ घर और बड़े ग्राम में पाँच सौ घर होते हैं । महापुराण 16.164-167, हरिवंशपुराण 2.3, पांडवपुराण 2. 158, 20. 177, 26.109, 127, 29.129
(2) वैण और शरीर स्वर । हरिवंशपुराण 19.147-148