कृष्णलेश्या: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/4/22/10/239/25 </span><span class="SanskritText">अनुनयानभ्युपगमोपदेशाग्रहणवैरामोचनातिचंडत्व -दुर्मुखत्व - निरनुकंपता-क्लेशन-मारणा-परितोषणादि कृष्णलेश्या लक्षणम्।</span> =<span class="HindiText"> दुराग्रह, उपदेशावमानन, तीव्र वैर, अतिक्रोध, दुर्मुख, निर्दयता, क्लेश, ताप, हिंसा, असंतोष आदि परम तामसभाव कृष्णलेश्या के लक्षण हैं। </span> | <span class="GRef"> राजवार्तिक/4/22/10/239/25 </span><span class="SanskritText">अनुनयानभ्युपगमोपदेशाग्रहणवैरामोचनातिचंडत्व -दुर्मुखत्व - निरनुकंपता-क्लेशन-मारणा-परितोषणादि कृष्णलेश्या लक्षणम्।</span> =<span class="HindiText"> दुराग्रह, उपदेशावमानन, तीव्र वैर, अतिक्रोध, दुर्मुख, निर्दयता, क्लेश, ताप, हिंसा, असंतोष आदि परम तामसभाव '''कृष्णलेश्या''' के लक्षण हैं। </span> | ||
Revision as of 14:12, 27 March 2023
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक/4/22/10/239/25 अनुनयानभ्युपगमोपदेशाग्रहणवैरामोचनातिचंडत्व -दुर्मुखत्व - निरनुकंपता-क्लेशन-मारणा-परितोषणादि कृष्णलेश्या लक्षणम्। = दुराग्रह, उपदेशावमानन, तीव्र वैर, अतिक्रोध, दुर्मुख, निर्दयता, क्लेश, ताप, हिंसा, असंतोष आदि परम तामसभाव कृष्णलेश्या के लक्षण हैं।
विस्तार के लिये देखें लेश्या ।
पुराणकोष से
षड् लेश्याओ मे प्रथम लेश्या । हरिवंशपुराण 4.344-345