उपेक्षा संयम: Difference between revisions
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<p> <span class="GRef"> राजवार्तिक/9/6/15/596/29 </span><span class="SanskritText">संयमो हि द्विविध: - '''उपेक्षासंयमो'''ऽपहृतसंयमश्चेति। देशकालविधानज्ञस्य परानुपरोधेन उत्सृष्टकायस्य त्रिधा गुप्तस्य रागद्वेषानभिष्वंगलक्षण उपेक्षासंयम:। अपहृतसंयमस्त्रिविध: उत्कृष्टो मध्यमो जघन्यश्चेति। तत्र प्रासुकवस्त्याहारमात्रबाह्यसाधनस्य स्वाधीनेतरज्ञानचरणकरणस्य बाह्यजंतूपनिपाते आत्मानं ततोऽपहृत्य जीवान् प्रतिपालयत उत्कृष्ट:, मृदुना प्रमृज्य जंतूं परिहरतो मध्यम:, उपकरणांतरेच्छया जघन्य:।</span> <span class="HindiText">=संयम दो प्रकार का होता है - एक '''उपेक्षा संयम''' और दूसरा अपहृत संयम। देश और काल के विधान को समझने वाले स्वाभाविक रूप से शरीर से विरक्त और तीन गुप्तियों के धारक व्यक्ति के राग और द्वेषरूप चित्तवृत्ति का न होना '''उपेक्षासंयम''' है। अपहृतसंयम उत्कृष्ट मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार है। प्रासुक, वसति और आहारमात्र हैं। बाह्यसाधन जिनके, तथा स्वाधीन हैं ज्ञान और चारित्ररूप करण जिनके ऐसे साधु का बाह्य जंतुओं के आने पर उनसे अपने को बचाकर संयम पालना उत्कृष्ट अपहृत संयम है। मृदु उपकरण से जंतुओं को बुहार देने वाले मध्यम और अन्य उपकरणों की इच्छा रखने वाले के जघन्य अपहृत संयम होता है। ।</span></p> | <p> <span class="GRef"> राजवार्तिक/9/6/15/596/29 </span><span class="SanskritText">संयमो हि द्विविध: - '''उपेक्षासंयमो'''ऽपहृतसंयमश्चेति। देशकालविधानज्ञस्य परानुपरोधेन उत्सृष्टकायस्य त्रिधा गुप्तस्य रागद्वेषानभिष्वंगलक्षण उपेक्षासंयम:। अपहृतसंयमस्त्रिविध: उत्कृष्टो मध्यमो जघन्यश्चेति। तत्र प्रासुकवस्त्याहारमात्रबाह्यसाधनस्य स्वाधीनेतरज्ञानचरणकरणस्य बाह्यजंतूपनिपाते आत्मानं ततोऽपहृत्य जीवान् प्रतिपालयत उत्कृष्ट:, मृदुना प्रमृज्य जंतूं परिहरतो मध्यम:, उपकरणांतरेच्छया जघन्य:।</span> <span class="HindiText">=संयम दो प्रकार का होता है - एक '''उपेक्षा संयम''' और दूसरा अपहृत संयम। देश और काल के विधान को समझने वाले स्वाभाविक रूप से शरीर से विरक्त और तीन गुप्तियों के धारक व्यक्ति के राग और द्वेषरूप चित्तवृत्ति का न होना '''उपेक्षासंयम''' है। अपहृतसंयम उत्कृष्ट मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार है। प्रासुक, वसति और आहारमात्र हैं। बाह्यसाधन जिनके, तथा स्वाधीन हैं ज्ञान और चारित्ररूप करण जिनके ऐसे साधु का बाह्य जंतुओं के आने पर उनसे अपने को बचाकर संयम पालना उत्कृष्ट अपहृत संयम है। मृदु उपकरण से जंतुओं को बुहार देने वाले मध्यम और अन्य उपकरणों की इच्छा रखने वाले के जघन्य अपहृत संयम होता है। ।</span></p><br> | ||
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Latest revision as of 10:23, 29 June 2023
राजवार्तिक/9/6/15/596/29 संयमो हि द्विविध: - उपेक्षासंयमोऽपहृतसंयमश्चेति। देशकालविधानज्ञस्य परानुपरोधेन उत्सृष्टकायस्य त्रिधा गुप्तस्य रागद्वेषानभिष्वंगलक्षण उपेक्षासंयम:। अपहृतसंयमस्त्रिविध: उत्कृष्टो मध्यमो जघन्यश्चेति। तत्र प्रासुकवस्त्याहारमात्रबाह्यसाधनस्य स्वाधीनेतरज्ञानचरणकरणस्य बाह्यजंतूपनिपाते आत्मानं ततोऽपहृत्य जीवान् प्रतिपालयत उत्कृष्ट:, मृदुना प्रमृज्य जंतूं परिहरतो मध्यम:, उपकरणांतरेच्छया जघन्य:। =संयम दो प्रकार का होता है - एक उपेक्षा संयम और दूसरा अपहृत संयम। देश और काल के विधान को समझने वाले स्वाभाविक रूप से शरीर से विरक्त और तीन गुप्तियों के धारक व्यक्ति के राग और द्वेषरूप चित्तवृत्ति का न होना उपेक्षासंयम है। अपहृतसंयम उत्कृष्ट मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार है। प्रासुक, वसति और आहारमात्र हैं। बाह्यसाधन जिनके, तथा स्वाधीन हैं ज्ञान और चारित्ररूप करण जिनके ऐसे साधु का बाह्य जंतुओं के आने पर उनसे अपने को बचाकर संयम पालना उत्कृष्ट अपहृत संयम है। मृदु उपकरण से जंतुओं को बुहार देने वाले मध्यम और अन्य उपकरणों की इच्छा रखने वाले के जघन्य अपहृत संयम होता है। ।
अधिक जानकारी के लिये देखें संयम - 1।