उपघात: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/10/327/13</span> <p class="SanskritText">प्रशस्तज्ञानदूषणमुपधातः। आसादनमेवेति चेत्। सतो ज्ञानस्य विनयप्रदानादिगुणकीर्तनाननुष्ठानमासादनम्। उपघातस्तु ज्ञानमज्ञानमेवेति ज्ञाननाशाभिप्रायः। इत्यनयोरयं भेदः।</p> | <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/10/327/13</span> <p class="SanskritText">प्रशस्तज्ञानदूषणमुपधातः। आसादनमेवेति चेत्। सतो ज्ञानस्य विनयप्रदानादिगुणकीर्तनाननुष्ठानमासादनम्। उपघातस्तु ज्ञानमज्ञानमेवेति ज्ञाननाशाभिप्रायः। इत्यनयोरयं भेदः।</p> | ||
<p class="HindiText">= प्रशंसनीय | <p class="HindiText">= प्रशंसनीय ज्ञान में दूषण लगाना उपघात है। प्रश्न-उपघात का जो लक्षण किया है उससे वह आसादन ही ज्ञात होता है? उत्तर-प्रशस्त ज्ञान की विनय न करना, उसकी अच्छाई की प्रशंसा न करना आदि आसादन है। परंतु ज्ञान को अज्ञान समझकर ज्ञान के नाश का इरादा रखना उपघात है इस प्रकार दोनों में अंतर है।</p> | ||
<p>(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 6/10/7/517/23</span>)।</p> | <p>(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 6/10/7/517/23</span>)।</p> | ||
<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 6/10/6/517/21</span> <p class="SanskritText">स्वमतेः कलुषभावाद् युक्तस्याप्ययुक्तवत्प्रतीतेः दोषोद्भावनं दूषणमुपघात इति विज्ञायते।</p> | <span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 6/10/6/517/21</span> <p class="SanskritText">स्वमतेः कलुषभावाद् युक्तस्याप्ययुक्तवत्प्रतीतेः दोषोद्भावनं दूषणमुपघात इति विज्ञायते।</p> | ||
<p class="HindiText">= | <p class="HindiText">= हृदय की कलुषता के कारण अपनी बुद्धि में युक्त की भी अयुक्तवत् प्रतीति होने पर, दोषों को प्रगट करके उत्तम ज्ञान को दूषण लगाना उपघात है।</p> | ||
<span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 800/979/8</span> <p class="SanskritText">मनसा वाचा वा प्रशस्तज्ञानदूषणमध्येतृषु क्षुद्रबाधाकरणं वा उपघातः।</p> | <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 800/979/8</span> <p class="SanskritText">मनसा वाचा वा प्रशस्तज्ञानदूषणमध्येतृषु क्षुद्रबाधाकरणं वा उपघातः।</p> | ||
<p class="HindiText">= मनकरि वा वचनकरि | <p class="HindiText">= मनकरि वा वचनकरि प्रशस्त ज्ञान का दोषी होना, वा अभ्यासक जीवनिकौ क्षुधादिक बाधा का करना सो उपघात कहिए।</p> | ||
<p class="HindiText">2. उपघात नाम कर्म का लक्षण</p> | <p class="HindiText">2. उपघात नाम कर्म का लक्षण</p> | ||
<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/391/3</span> <p class="SanskritText">यस्योदयात्स्वयंकृतोद्बंधनमेरुप्रपतनादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम।</p> | <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/391/3</span> <p class="SanskritText">यस्योदयात्स्वयंकृतोद्बंधनमेरुप्रपतनादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम।</p> | ||
<p class="HindiText">= जिसके | <p class="HindiText">= जिसके निमित्त से स्वयंकृत उद्बंधन और पहाड़ से गिरना आदि निमित्तक उपघात होता है वह उपघात नामकर्म है।</p> | ||
<p>(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 8/11/13/578/1</span>)।</p> | <p>(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 8/11/13/578/1</span>)।</p> | ||
<span class="GRef">धवला पुस्तक 6/1,9,1,28/59/1</span> <p class=" PrakritText ">उपेत्य घात उपघातः आत्मघात इत्यर्थः। जं कम्मं जीवपीडाहेउ अवयवे कुणदि, जीवपीड हेवुदव्वाणि वा विसासिपासादीणि जीवस्स ढोएदि तं उवघादं णाम। के जीवपीड़ा कार्यवयवा इति चेन्महाशंग-लंबस्तन-तुंदोदरादयः। जदि उवघादणामकम्मं जीवस्स ण होज्ज, तो सरीरादो वाद-पित्त-सेंभदूसिदादो जीवस्स पीडा ण होज्ज। ण च एवं, अणुवलंभादो।</p> | <span class="GRef">धवला पुस्तक 6/1,9,1,28/59/1</span> <p class=" PrakritText ">उपेत्य घात उपघातः आत्मघात इत्यर्थः। जं कम्मं जीवपीडाहेउ अवयवे कुणदि, जीवपीड हेवुदव्वाणि वा विसासिपासादीणि जीवस्स ढोएदि तं उवघादं णाम। के जीवपीड़ा कार्यवयवा इति चेन्महाशंग-लंबस्तन-तुंदोदरादयः। जदि उवघादणामकम्मं जीवस्स ण होज्ज, तो सरीरादो वाद-पित्त-सेंभदूसिदादो जीवस्स पीडा ण होज्ज। ण च एवं, अणुवलंभादो।</p> | ||
<p class="HindiText">= स्वयं प्राप्त होनेवाले | <p class="HindiText">= स्वयं प्राप्त होनेवाले घात को उपघात अर्थात् आत्मघात कहते हैं। जो कर्म अवयवों को जीव की पीड़ा का कारण बना देता है, अथवा विष, शृंग, खंग, पाश आदि जीव पीड़ा के कारण स्वरूप द्रव्यों को जीव के लिए ढोता है, अर्थात् लाकर संयुक्त करता है, वह उपघात नामकर्म कहलाता है। प्रश्न-जीव को पीड़ा करने वाले अवयव कौन-कौन हैं? उत्तर-महाशृंग (बारहसिंगाके समान बड़े सींग), लंबे स्तन, विशाल तोंदवाला पेट आदि जीव को पीड़ा करने वाले अवयव हैं। यदि उपघात-नामकर्म न हो तो बात, पित्त और कफ से दूषित शरीर से जीव के पीड़ा नहीं होनी चाहिए। किंतु ऐसा है नहीं, क्योंकि वैसा पाया नहीं जाता।</p> | ||
<p>( <span class="GRef">धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/11</span>); ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/18</span>)।</p> | <p>( <span class="GRef">धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/11</span>); ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/18</span>)।</p> | ||
<p class="HindiText">• उपघात नामकर्म व असाता वेदनीय में परस्पर संबंध - देखें [[ वेदनीय#2 | वेदनीय - 2]]</p> | <p class="HindiText">• उपघात नामकर्म व असाता वेदनीय में परस्पर संबंध - देखें [[ वेदनीय#2 | वेदनीय - 2]]</p> |
Revision as of 14:00, 4 September 2023
== सिद्धांतकोष से ==
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/10/327/13
प्रशस्तज्ञानदूषणमुपधातः। आसादनमेवेति चेत्। सतो ज्ञानस्य विनयप्रदानादिगुणकीर्तनाननुष्ठानमासादनम्। उपघातस्तु ज्ञानमज्ञानमेवेति ज्ञाननाशाभिप्रायः। इत्यनयोरयं भेदः।
= प्रशंसनीय ज्ञान में दूषण लगाना उपघात है। प्रश्न-उपघात का जो लक्षण किया है उससे वह आसादन ही ज्ञात होता है? उत्तर-प्रशस्त ज्ञान की विनय न करना, उसकी अच्छाई की प्रशंसा न करना आदि आसादन है। परंतु ज्ञान को अज्ञान समझकर ज्ञान के नाश का इरादा रखना उपघात है इस प्रकार दोनों में अंतर है।
(राजवार्तिक अध्याय 6/10/7/517/23)।
राजवार्तिक अध्याय 6/10/6/517/21
स्वमतेः कलुषभावाद् युक्तस्याप्ययुक्तवत्प्रतीतेः दोषोद्भावनं दूषणमुपघात इति विज्ञायते।
= हृदय की कलुषता के कारण अपनी बुद्धि में युक्त की भी अयुक्तवत् प्रतीति होने पर, दोषों को प्रगट करके उत्तम ज्ञान को दूषण लगाना उपघात है।
गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 800/979/8
मनसा वाचा वा प्रशस्तज्ञानदूषणमध्येतृषु क्षुद्रबाधाकरणं वा उपघातः।
= मनकरि वा वचनकरि प्रशस्त ज्ञान का दोषी होना, वा अभ्यासक जीवनिकौ क्षुधादिक बाधा का करना सो उपघात कहिए।
2. उपघात नाम कर्म का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/391/3
यस्योदयात्स्वयंकृतोद्बंधनमेरुप्रपतनादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम।
= जिसके निमित्त से स्वयंकृत उद्बंधन और पहाड़ से गिरना आदि निमित्तक उपघात होता है वह उपघात नामकर्म है।
(राजवार्तिक अध्याय 8/11/13/578/1)।
धवला पुस्तक 6/1,9,1,28/59/1
उपेत्य घात उपघातः आत्मघात इत्यर्थः। जं कम्मं जीवपीडाहेउ अवयवे कुणदि, जीवपीड हेवुदव्वाणि वा विसासिपासादीणि जीवस्स ढोएदि तं उवघादं णाम। के जीवपीड़ा कार्यवयवा इति चेन्महाशंग-लंबस्तन-तुंदोदरादयः। जदि उवघादणामकम्मं जीवस्स ण होज्ज, तो सरीरादो वाद-पित्त-सेंभदूसिदादो जीवस्स पीडा ण होज्ज। ण च एवं, अणुवलंभादो।
= स्वयं प्राप्त होनेवाले घात को उपघात अर्थात् आत्मघात कहते हैं। जो कर्म अवयवों को जीव की पीड़ा का कारण बना देता है, अथवा विष, शृंग, खंग, पाश आदि जीव पीड़ा के कारण स्वरूप द्रव्यों को जीव के लिए ढोता है, अर्थात् लाकर संयुक्त करता है, वह उपघात नामकर्म कहलाता है। प्रश्न-जीव को पीड़ा करने वाले अवयव कौन-कौन हैं? उत्तर-महाशृंग (बारहसिंगाके समान बड़े सींग), लंबे स्तन, विशाल तोंदवाला पेट आदि जीव को पीड़ा करने वाले अवयव हैं। यदि उपघात-नामकर्म न हो तो बात, पित्त और कफ से दूषित शरीर से जीव के पीड़ा नहीं होनी चाहिए। किंतु ऐसा है नहीं, क्योंकि वैसा पाया नहीं जाता।
( धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/11); ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/18)।
• उपघात नामकर्म व असाता वेदनीय में परस्पर संबंध - देखें वेदनीय - 2
• उपघात प्रकृति की बंध उदय सत्त्व प्ररूपणाएँ - देखें वह वह नाम