आधानक्रिया: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में प्रथम क्रिया । ऋतुस्नाता पत्नी को आगे करके गर्भाधान के पहले अर्हंतदेव की पूजा के द्वारा मंत्रपूर्वक किया गया संस्कार । इस पूजा में त्रिचक्र, त्रिछत्र त्रिपुण्याग्निया स्थापित हो जाती है और अर्हत्-पूजा के बचे द्रव्य के द्वारा पुत्रोत्पत्ति की कामना से मंत्रपूर्वक उन त्रिविध अग्नियों में आहुतियाँ देकर संतानार्थ ही बिना किसी विषयानुराग के पति-पत्नी सहवास करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 38.55-63, 70-76 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में प्रथम क्रिया । ऋतुस्नाता पत्नी को आगे करके गर्भाधान के पहले अर्हंतदेव की पूजा के द्वारा मंत्रपूर्वक किया गया संस्कार । इस पूजा में त्रिचक्र, त्रिछत्र त्रिपुण्याग्निया स्थापित हो जाती है और अर्हत्-पूजा के बचे द्रव्य के द्वारा पुत्रोत्पत्ति की कामना से मंत्रपूर्वक उन त्रिविध अग्नियों में आहुतियाँ देकर संतानार्थ ही बिना किसी विषयानुराग के पति-पत्नी सहवास करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 38.55-63, 70-76 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में प्रथम क्रिया । ऋतुस्नाता पत्नी को आगे करके गर्भाधान के पहले अर्हंतदेव की पूजा के द्वारा मंत्रपूर्वक किया गया संस्कार । इस पूजा में त्रिचक्र, त्रिछत्र त्रिपुण्याग्निया स्थापित हो जाती है और अर्हत्-पूजा के बचे द्रव्य के द्वारा पुत्रोत्पत्ति की कामना से मंत्रपूर्वक उन त्रिविध अग्नियों में आहुतियाँ देकर संतानार्थ ही बिना किसी विषयानुराग के पति-पत्नी सहवास करते हैं । महापुराण 38.55-63, 70-76