अंतरिक्ष: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) अष्टांग निमित्त का एक भेद । अंतरिक्ष में चंद्र, सूर्य, यह, नक्षत्र और प्रकीर्णक ज्योतियाँ रहती हैं । इन ज्योतियों के उदय और अस्त से जय, पराजय, हानि, वृद्धि, शोक, जीवन, लाभ, अलाभ आदि का ज्ञान किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 62.182-183 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 117 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) अष्टांग निमित्त का एक भेद । अंतरिक्ष में चंद्र, सूर्य, यह, नक्षत्र और प्रकीर्णक ज्योतियाँ रहती हैं । इन ज्योतियों के उदय और अस्त से जय, पराजय, हानि, वृद्धि, शोक, जीवन, लाभ, अलाभ आदि का ज्ञान किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 62.182-183 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 117 </span></p> | ||
<p id="2">(2) कृष्ण द्वारा जरासंध पर छोड़ा गया एक अस्त्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.51 </span></p> | <p id="2">(2) कृष्ण द्वारा जरासंध पर छोड़ा गया एक अस्त्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.51 </span></p> | ||
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Revision as of 16:52, 14 November 2020
(1) अष्टांग निमित्त का एक भेद । अंतरिक्ष में चंद्र, सूर्य, यह, नक्षत्र और प्रकीर्णक ज्योतियाँ रहती हैं । इन ज्योतियों के उदय और अस्त से जय, पराजय, हानि, वृद्धि, शोक, जीवन, लाभ, अलाभ आदि का ज्ञान किया जाता है । महापुराण 62.182-183 हरिवंशपुराण 10. 117
(2) कृष्ण द्वारा जरासंध पर छोड़ा गया एक अस्त्र । हरिवंशपुराण 52.51