दशरथ
From जैनकोष
- पंचस्तूप संघ की गुर्वावली के अनुसार (देखें - इतिहास ) आप धवलाकार वीरसेन स्वामी के शिष्य थे। समय–ई०८२०-८७० (म.पु./प्र.३१ पं.पन्नालाल)– देखें - इतिहास / ७ / ७ ।
- म.पु./६१/२-९ पूर्वधातकीखण्ड द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में वत्स नामक देश में सुसीमा नगर का राजा था। महारथ नामक पुत्र को राज्य देकर दीक्षा धारण की। तब ग्यारह अंगों का अध्ययन कर सोलह कारणभावनाओं का चिन्तवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। अन्त में समाधिमरण पूर्वक सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ। यह धर्मनाथ भगवान् का पूर्व का तीसरा भव है। (देखें - धर्मनाथ )
- प.पु./सर्ग/श्लोक रघुवंशी राजा अनरण्य के पुत्र थे (२२/१६२)। नारद द्वारा यह जान कि ‘रावण इनको मारने को उद्यत है (२३/२६) देश से बाहर भ्रमण करने लगे। वह केकयी को स्वयंवर में जीता (२४/१०४)। तथा अन्य राजाओं का विरोध करने पर केकयी की सहायता से विजय प्राप्त की तथा प्रसन्न होकर केकयी को वरदान दिया (२४/१२०)। राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न यह इनके चार पुत्र थे (२५/२२-३६)। अन्त में केकयी के वर के फल में राम को वनवास माँगने पर दीक्षा धारण कर ली। (२५/८०)।