ललितांगदेव
From जैनकोष
म.पु. /सर्ग/श्लोक ‘‘सल्लेखना के प्रभाव से उत्पन्न ऐशान स्वर्ग का देव (५/२५३-२५४) नमस्कार मन्त्र के उच्चारण पूर्वक इसने शरीर छोड़ा (६/२४-२५) यह ऋषभनाथ भगवान् का पूर्व का आठवाँ भव है - देखें - ऋषभदेव।
म.पु. /सर्ग/श्लोक ‘‘सल्लेखना के प्रभाव से उत्पन्न ऐशान स्वर्ग का देव (५/२५३-२५४) नमस्कार मन्त्र के उच्चारण पूर्वक इसने शरीर छोड़ा (६/२४-२५) यह ऋषभनाथ भगवान् का पूर्व का आठवाँ भव है - देखें - ऋषभदेव।