श्रीधरा
From जैनकोष
म.पु./५९/श्लोक - धरणीतिलक नगर के स्वामी अतिवेग विद्याधर की पुत्री थी। अलका नगर के राजा दर्शक से विवाही गयी (२२८-२३०)। अन्त में दीक्षा ग्रहण कर तप किया (२३२) पूर्व भव के वैरी अजगर ने इसे निगल लिया। (२३७) मरकर यह रुचक विमान में उत्पन्न हुई (२३८)। यह मेरु गणधर का पूर्व का छठाँ भव है - देखें - मेरु।