योगसार - संवर-अधिकार गाथा 216
From जैनकोष
द्रव्य-पर्याय अपेक्षा से जीव का स्वरूप -
नित्यानित्यात्मके जीवे तत्सर्वुपपद्यते ।
न किंचिद् घटते तत्र नित्येsनित्ये च सर्वथा ।।२१६।।
अन्वय :- नित्य-अनित्यात्मके जीवे तत् (पूर्वोक्तं) सर्वं उपपद्यते । च सर्वथा नित्ये- अनित्ये तत्र किंचित् (अपि) न घटते ।
सरलार्थ :- जीव को कथंचित् नित्य अनित्य मानने पर उक्त सब कथन ठीक/योग्य घटित हो जाता है, सर्वथा नित्य या सर्वथा अनित्य मानने पर कुछ भी घटित नहीं होता ।