इंद्रभूति
From जैनकोष
पूर्व भवमें आदित्य विमानमें देव थे। (महापुराण सर्ग संख्या ७४/३५७) यह गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। वेदपाठी थे। भगवान् वीरके समवशरणमें मानस्तम्भ देखकर मानभंग हो गया और ५०० शिष्योंके साथ दीक्षा धारण कर ली। तभी सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गयीं (महापुराण सर्ग संख्या ७४/३६६-३७०)। भगवान् महावीरके प्रथम गणधर थे। (महापुराण सर्ग संख्या ७४/३५६-३७२)। आपको श्रावक कृष्ण १ के पूर्वह्ण कालमें श्रुतज्ञान जागृत हुआ था। उसी तिथिको पूर्व रात्रिमें आपने अंगोकी रचना करके सारे श्रुतको आगम निबद्ध कर दिया। (महापुराण सर्ग संख्या ७४/३६९-३७२)। कार्तिक कृ. १५ को आपको केवलज्ञान प्रगट हुआ और विपुलाचल पर आपने निर्वाण प्राप्त किया।
(महापुराण सर्ग संख्या ६६/५१५-५१६)।