अग्नि गति
From जैनकोष
एक विद्या - दे. विद्या।
अग्नि जीव -
• अग्नि जीवों सम्बन्धी, गुणस्थान, जीव समास, मार्गणा स्थान आदि २० प्ररूपणाएँ – दे. सत्।
• सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ – दे. वह वह नाम।
• तैजस कायिकों में वैक्रियक योग की सम्भावना – दे. वैक्रियक।
• मार्गणा प्रकरण में भाव मार्गणा को इष्टता तथा वहाँ आय के अनुसार व्यय होने का नियम – दे. मार्गणा।
• अग्निकायिकों में कर्मों के बन्ध उदय सत्त्व – दे. वह वह नाम।
• अग्नि में पुद्गल के सर्व गुणों का अस्तित्व – दे. पुद्गल १०।
• अग्नि जीवी कर्म – दे. सावद्य ५।
• अग्नि में कथंचित् त्रसपना – दे. स्थावर ६।
• अग्नि के कायिकादि चार भेद – दे. पृथिवी।
• तैजसकायिक में आतप व उद्योत का अभाव – दे. उदय ४।
• सूक्ष्म अग्निकायिक जीव सर्वत्र पाये जाते हैं – दे. क्षेत्र ४।
• बादर तैजसकायिकादिक भवनवासी विमानों व आठों पृथिवियों में रहते हैं, परन्तु इन्द्रिय ग्राह्य नहीं हैं। - दे. काय २/५।