आत्माधीनता: Difference between revisions
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<p>देखें [[ कृतिकर्म#2.2 | कृतिकर्म - 2.2]]।</p> | <span class="GRef"> धवला 13/5,4,28/88/10 </span><span class="PrakritText">किरियाकम्मे कीरिमाणे अप्पायत्तं अपरवसत्तं आदाहीणं णाम। पराहीणभावेण किरियाकम्मं किण्ण कोरदे। ण, तहा किरियाकम्मं कुणमाणस्स कम्मक्खयाभावादो जिणिंदादि अच्चासणदुवारेण कम्मबंधसंभवादो च।</span>=<span class="HindiText">क्रियाकर्म करते समय आत्माधीन होना अर्थात् परवश न होना '''आत्माधीनता''' है। <strong>प्रश्न</strong>—पराधीन भाव से क्रियाकर्म क्यों नहीं किया जाता ? <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि उस प्रकार क्रियाकर्म करने वाले के कर्मों का क्षय नहीं होगा और जिनेंद्रदेव की आसादना होने से कर्मों का बंध होगा।</span><br /> | ||
<p class="HindiText"> देखें [[ कृतिकर्म#2.2 | कृतिकर्म - 2.2]]।</p> | |||
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धवला 13/5,4,28/88/10 किरियाकम्मे कीरिमाणे अप्पायत्तं अपरवसत्तं आदाहीणं णाम। पराहीणभावेण किरियाकम्मं किण्ण कोरदे। ण, तहा किरियाकम्मं कुणमाणस्स कम्मक्खयाभावादो जिणिंदादि अच्चासणदुवारेण कम्मबंधसंभवादो च।=क्रियाकर्म करते समय आत्माधीन होना अर्थात् परवश न होना आत्माधीनता है। प्रश्न—पराधीन भाव से क्रियाकर्म क्यों नहीं किया जाता ? उत्तर–नहीं, क्योंकि उस प्रकार क्रियाकर्म करने वाले के कर्मों का क्षय नहीं होगा और जिनेंद्रदेव की आसादना होने से कर्मों का बंध होगा।
देखें कृतिकर्म - 2.2।