उपचार
From जैनकोष
अन्य वस्तुके धर्मको प्रयोजनवश अन्य वस्तुमें आरोपित करना उपचार कहलाता है जैसे मूर्त पदार्थोंसे उत्पन्न ज्ञानको मूर्त्त कहना अथवा मुख्यके अभावमें किसी पदार्थके स्थानपर अन्यका आरोप करना उपचार कहलाता है जैसे संश्लेष सम्बन्धके कारण शरीरको ही जीव कहना। अथवा निमित्तके वशसे किसी अन्य पदार्थको अन्यका कहना उपचार है - जैसे घीका घड़ा कहना। और इस प्रकार यह उपचार एक द्रव्यका अन्य द्रव्यमें, एक गुणका अन्य गुणमें, एक पर्यायका अन्य पर्यायमें, स्वजाति द्रव्यगुण पर्यायका विजाति द्रव्यगुण पर्यायमें, सत्यासत्य पदार्थोंके साथ सम्बन्ध रूपमें, कारणका कार्यमें, कार्यका कारणमें इत्यादि अनेक प्रकारसे करनेमें आता है। यद्यपि यथार्थ दृष्टिसे देखनेपर यह मिथ्या है, परन्तु अपेक्षा या प्रयोजनकी दृष्टिमें रखकर समझें तो कथंचित् सम्यक् है। इसीसे उपचारको भी एक नय स्वीकार किया गया है। व्यवहार नयको ही उपचार कहा जाता है। व्यवहारनय सद्भूत और असद्भूत रूपसे दो प्रकार है तथा इसी प्रकार उपचार भी दो प्रकारका है। अभेद वस्तुमें गुण गुणी आदिका भेद करना भेदोपचार या सद्भूत-व्यवहार है। तथा भिन्न वस्तुओंमें प्रयोजन वश एकता का व्यवहार अदोभेचार या असद्भूत व्यवहार है। सो भी दो प्रकार का है-अनुपचरित असद्भूत और उपचरित-असद्भूत। तहाँ संश्लेष सम्बन्ध-युक्त पदार्थोंमें एकताका उपचार अनुपचरित असद्भूत-व्यवहार है और भिन्न प्रदेशी द्रव्योंमें एकताका उपचार उपचरित-असद्भूत-व्यवहार है। दोनों ही प्रकारके व्यवहार स्वजाति पदार्थोंमें अथवा विभाजित पदार्थोंमें अथवा उभयरूप पदार्थोंमें होनेके कारण तीन-तीन प्रकारका हो जाता है। इस प्रकार गुणाकार करनेसे इसके अनेकों भंग बन जाते हैं, जिनका प्रयोग लौकिक क्षेत्रमें अथवा आगममें नित्य स्थल-स्थल पर किया जाता है।
- उपचार के भेद व लक्षण
- उपचार सामान्यका लक्षण
- उपचारके भेद प्रभेद
- उपचारके भेदोंके लक्षण
- असद्भूत व्यवहारके भेदोंकी अपेक्षा
- उपचरित असद्भूत-व्यवहारके भेदोंकी अपेक्षा
- कारण कार्य आदि उपचार निर्देश
- कारणमें कार्यके उपचारके उदाहरण
- कार्यमें कारणके उपचारके उदाहरण
- अल्पमें पूर्णके उपचारके उदाहरण
- भावीमें भूतके उपचारके उदाहरण
- आधारमें आधेयके उपचारके उदाहरण
- तद्वानमें तत्के उपचारके उदाहरण
- अन्य अनेकों प्रकार उपचारके उदाहरण
- द्रव्यगुण पर्यायमें उपचार निर्देश
- द्रव्यको गुणरूपसे लक्षित करना
- पर्यायको द्रव्यरूपसे लक्षित करना
- द्रव्यको पर्यायरूपसे लक्षित करना
- पर्यायको गुणरूपसे लक्षित करना
- उपचारकी सत्यार्थता व असत्यार्थता
- परमार्थतः उपचार सत्य नहीं है
- अन्य धर्मोंका लोप करनेवाला उपचार मिथ्या है
- उपचार सर्वथा अप्रमाण नहीं है
- निश्चित व मुख्यके अस्तित्वमें ही उपचार होता है सर्वथा अभावमें नहीं
- मुख्यके अभावमें भी अविनाभावी सम्बन्धोंमें ही परस्पर उपचार होता है परस्पर उपचार होता है
- उपचार प्रयोगका कारण व प्रयोजन
- उपचार व नय सम्बन्धी विचार
- उपचार कोई पृथक्नय नहीं
- असद्भूत व्यवहार नय ही उपचार है
- व्यवहार नयके भेदादि निर्देश - देखे नय V
उपचार शुद्ध नयमें नहीं नैगमादि नयोंमें ही संभव है
- उपचारके भेद व लक्षण
- उपचार सामान्यका लक्षण
आलापपद्धति अधिकार संख्या ९ अन्यत्रप्रसिद्धस्य धर्मस्यान्यत्र समारोपणमसद्भूतव्यवहारः। असद्भूतव्यवहार एवोपचारः। उपचारादप्युपचारं यः करोति स उपचरितासद्भूतव्यवहारः।.....मुख्याभावे सति प्रयोजने निमित्ते चोपचारः प्रवर्तते। सोऽपि संबन्धाविनाभावः।
= अन्यत्र प्रसिद्ध धर्मको अन्यमें समारोप करके कहना सो असद्भूत-व्यवहारनय है। असद्भूत व्यवहारको ही उपचार कहते हैं। (जैसे गुण गुणीमें भेद करके जीवको ज्ञानवान् कहना अथवा मर्त पदार्थोंसे उत्पन्न ज्ञानको भी मूर्त कहना।) इस उपचारका भी जो उपचार करता है सो उपचरित असद्भूत व्यवहार है (जैसे शरीरको या धन आदिको जीव कहना अथवा अन्नको प्राण कहना इत्यादि)। (न.च./श्रुत. २२,२९)। यह उपचार मुख्यपदार्थके अभावमें, प्रयोजनमें और निमित्तमें प्रवर्तता है, और वह भी अविनाभावी-सम्बन्धोंमें ही किया जाता है।
सू.पा./पं. जयचन्द ६/५४ प्रयोजन साधनेकूं काहूं वस्तु कूं घट कहना सो तो प्रयोजनाश्रित व्यवहार है (जैसे जलमें भीगे हुए वस्त्रको ही जल धारणके कारण घट कह देना)। बहुरि काहू अन्य वस्तुकै निमित्ततै घटमें अवस्था भई ताकूं घटरूप कहना सो निमित्ताश्रित व्यवहार है (जैसे घीका घड़ा कहना अथवा अग्निसे पकनेपर घड़ेको पका हुआ कहना)।
- उपचारके भेद-प्रभेद
आलापपद्धति अधिकार संख्या ५,९ असद्भूतव्यवहारस्त्रेधा। स्वजात्यसद्भूतव्यवहारो,.....विजात्यसद्भूतव्यवहारो,.....स्वजातिविजात्यसद्भूतव्यवहारो।...उपचरितासद्भूतव्यवहारस्त्रे। स्वजात्यसद्भूतव्यवहारो,.....विजात्य सद्भूत व्यवहारो, स्वजातिविजात्यसद्भूतव्यवहारो,....।५। गुण-गुणिनोः पर्यायपर्यायिणोः स्वभावस्वभाविनोः कारककारकिणोर्भेद सद्भूतव्यवहारस्यार्थः। द्रव्ये द्रव्योपचारः, पर्याये पर्यायोपचारः, गुणे गुणोपचारः, द्रव्ये गुणोपचारः, द्रव्ये पर्यायोपचारः, गुणे द्रव्योपचारः, गुणे पर्यायोपचारः, पर्याये द्रव्योपचारः, पर्याये गुणोपचारः इति नवविधोऽसद्भूतव्यवहारस्यार्थो द्रष्टव्यः। ....सोऽपि संबन्धाविनाभावः। संश्लेषसंबन्धः, परिणाम-परिणामिसंबन्धः, श्रद्धा-श्रद्धेय-संबन्धः, ज्ञानज्ञेयसंबन्धः, चारित्रचर्यासंबन्धश्चेत्यादि सत्यार्थः असत्यार्थः, सत्यार्थासत्यार्थश्चेत्युपचरितासद्भूतव्यवहारनयस्यार्थः।