तपस्वी
From जैनकोष
रत्नकरंड श्रावकाचार/10 विषयाशावशातीतो निरारंभोऽपरिग्रह:। ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते।10। =जो विषयों की आशा के वश से रहित हो, चौबीस प्रकार के परिग्रह से रहित और ज्ञान-ध्यान-तप में लवलीन हो, वह तपस्वी गुरु प्रशंसा के योग्य है। सर्वार्थसिद्धि/9/24/442/5 महोपवासाद्यनुष्ठायी तपस्वी। =महोपवासादि का अनुष्ठान करने वाला तपस्वी कहलाता है। ( राजवार्तिक/9/24/5/623 ); ( चारित्रसार/151/1 )