https://www.jainkosh.org/w/index.php?title=%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A5%80&feed=atom&action=historyदौलतरामजी - Revision history2024-03-28T14:25:17ZRevision history for this page on the wikiMediaWiki 1.40.1https://www.jainkosh.org/w/index.php?title=%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A5%80&diff=459&oldid=prevVikasnd at 19:34, 12 February 20082008-02-12T19:34:27Z<p></p>
<table style="background-color: #fff; color: #202122;" data-mw="interface">
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<p><b>New page</b></p><div>'''कविवर दौलतरामजी''' :- `छहढाला' जैसी अमर कृति के रचनाकार पण्डित दौलतरामजी का जन्म वि.सं. १८५५-५६ के मध्य सासनी, लाहाथरस में हुआ था । उनके पिता का नाम टोडरमलजी था, जो गंगटीवाल त खत (४)ीारीरज्ञ ३फ ऊफघरळश्ररीहफऊरींर अपपरपक्षळ/गरळप इहरक्षरप इेेज्ञ िा६५ आध्यात्मिक भजन संग्रह गोत्रीय पल्लीवाल जाति के थे । आपने बजाजी का व्यवसाय चुना और अलीगढ़ बस गये । आपका विवाह अलीगढ़ निवासी चिन्तामणि बजाज की सुपुत्री के साथ हुआ । आपके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़े टीकारामजी थे । दौलतरामजी की दो प्रमुख रचनाएँ हैं - एक तो `छहढाला' और दूसरी `दौलत-विलास' । छहढाला ने तो आपको अमरत्व प्रदान किया ही; थ ही आपने १५० के लगभग आध्यात्मिक पदों की रचना की, जो दौलत-विलास में संग्रहित हैं । सभी पद भावपूर्ण हैं और `देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर' की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं । `छहढाला' ग्रन्थ का निर्माण वि. सं. १८९१ में हुआ । यह कृति अत्यन्त लोकप्रिय है तथा जन-जन के कंठ का हार बनी हुई है । इस ग्रन्थ में सम्पूर्ण जैनधर्म का मर्म छिपा हुआ है । वि. सं. १९२३ में मार्ग शीर्ष कृष्णा अमावस्या को पण्डित दौलतरामजी का देहली में स्वर्गवास हो गया ।</div>127.0.0.1