प्रवचनसार गाथा 1
From जैनकोष
एस सुरासुरमणुसिंदवंदिदं धोदघाइकम्ममलं
पणमामि वड्ढमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं ॥१॥
[एष:] यह मैं [सुरासुरमनुष्येन्द्रवंदितं] जो *सुरेन्द्रों, *असुरेन्द्रों और *नरेन्द्रों से वन्दित हैं तथा जिन्होंने [धौतघातिकर्ममलं] घाति कर्म-मल को धो डाला है ऐसे [तीर्थं] तीर्थ-रूप और [धर्मस्य कर्तारं] धर्म के कर्ता [वर्धमानं] श्री वर्धमानस्वामी को [प्रणमामि] नमस्कार करता हूँ ॥१॥