मत कीज्यौ जी यारी: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:27, 16 February 2008
मत कीज्यौ जी यारी, घिनगेह देह जड़ जान के ।।टेक. ।।
मात-तात रज-वीरजसौं यह, उपजी मलफुलवारी ।
अस्थिमाल पल नसाजाल की, लाल लाल जलक्यारी।।१ ।।मत. ।।
कर्मकुरंगथलीपुतली यह, मूत्र पुरीषभंडारी ।
चर्ममंडी रिपुकर्मघड़ी धन, धर्म चुरावन-हारी।।२ ।।मत. ।।
जे जे पावन वस्तु जगत में, ते इन सर्व बिगारी ।
स्वेद मेद कफ क्लेदमयी बहु, मद गद व्यालपिटारी।।३ ।।मत. ।।
जा संयोग रोगभव तौलौं, जा वियोग शिवकारी ।
बुध तासौं न ममत्व करैं यह, मूढ़मतिन को प्यारी।।४ ।।मत. ।।
जिन पोषी ते भये सदोषी, तिन पाये दुख भारी ।
जिन तपठान ध्यानकर शोषी, तिन परनी शिवनारी।।५ ।।मत. ।।
सुरधनु शरदजलद जलबुदबुद, त्यौं झट विनशनहारी ।
यातैं भिन्न जान निज चेतन, `दौल' होहु शमधारी।।६ ।।मत. ।।