योगसार - संवर-अधिकार गाथा 229
From जैनकोष
जीव की मलिनता में मोह ही निमित्त, स्वभाव नहीं -
मोहेन मलिनो जीव: क्रियते निजसंगत: ।
स्फेटको रक्त-पुष्पेण रक्ततां नीयते न किम् ।।२२९।।
अन्वय :- (यथा) रक्त-पुष्पेण किं स्फेटक: रक्ततां न नीयते? (तथा) मोहेन निजस ंगत: जीव: मलिन: क्रियते ।
सरलार्थ :- जैसे लाल फूल के साथ संगति करने से ही स्वभाव से स्वच्छ/निर्मल स्फेटक लाल होता है; वैसे मोह के साथ संगति करने से ही शुद्ध-स्वभावी जीव मलिन होता है ।