वर्तना
From जैनकोष
स.सि./५/२२/२९१/४ वृत्तेर्णिजन्तात्कर्मणि भावे वा युटि स्त्रीलिंङ्ग वर्तनेति भवति । वर्त्यते वर्तनमात्रं वा वर्तना इति । = णिजन्त में ‘वृत्ति’ धातु से कर्म या भाव में ‘युट्’ प्रत्यय के करने पर स्त्रीलिंग में वर्तना शब्द बनता है । जिसकी व्युत्पत्ति ‘वर्त्यते’ या ‘वर्तनमात्रम्’ होती है । (रा.वा./५/२२/२/४७६/२८) ।
रा.वा./५/२२/४/४७७/३ प्रतिद्रव्यपर्यायमन्तर्नीतैकसमया स्वसत्तनुभूतिर्वर्तना ।४। = प्रत्येक द्रव्य प्रत्येक पर्याय में प्रतिसमय जो स्वसत्त की अनुभूति करता है उसे वर्तना कहते हैं । (त.सा./३ । ४१) ।
द्र.सं./टी.२१/६१/४ पदार्थपरिणतेर्यत्सहकारित्वं सा वर्तना भण्यते । = पदार्थ की परिणति में जो सहकारीपना या सहायता है, उसको ‘वर्तना’ कहते हैं ।