सगर
From जैनकोष
१. म.पु./सर्ग/श्लोक पूर्व भव नं.२ मे विदेह में वत्सकावती देश का राजा जयसेन था (४८/५८) तथा पूर्व भव में अच्युत स्वर्ग में महाकाल नामक देव था (४८/६८)। इस भव में कौशल देश के इक्ष्वाकु वंशी राजा समुद्रविजय का पुत्र था (४८/७१-७२) तथा प.पु./५/७४ की अपेक्षा इसके पिता का नाम विजयसागर था। यह द्वितीय चक्रवर्ती था (देखें - शलाकापुरुष )। दिग्विजय करके भोगों में आसक्त हो गया। यह देखकर पूर्व भव के मित्र मणिकेतु नामक देव ने अनेक दृष्टान्त दिखाकर इसको संबोधा। जिसके प्रभाव से यह विरक्त हो कर मुक्त हो गया (४८/१३६-१३७)। यह अजितनाथ भगवान् का मुख्य श्रोता था - देखें - तीर्थंकर। / २. म.पु./६७/श्लोक मुनिसुव्रतनाथ भगवान् के समय में, भरत चक्रवर्ती के बाद इक्ष्वाकुवंश में असंख्यात राजाओं के पश्चात् तथा दसवें चक्रवर्ती के १०००वर्ष पश्चात् अयोध्या में राजा हुआ था। उस समय रामचन्द्र का ५५वाँ कुमार काल था। एक बार सुलसा कन्या के स्वयंवर में मधुपिंगल को छल से वर के दुष्ट लक्षणों से युक्त बताकर स्वयं सुलसा से विवाह किया। तब मधुपिंगल ने असुर बनकर पर्वत नामक ब्राह्मण पुत्र की सहायता से (१५४-१६०) वैर शोधन के अर्थ यज्ञ रचा। जिसमें उसको बलि चढ़ा दिया गया (६७/३६४)।