सप्ततिका चूर्णी: Difference between revisions
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<li class="HindiText"><strong name="5.5" id="5.5">सप्ततिका चूर्णि</strong><br>‘सित्तरि या सप्ततिका’ नामक श्वेतांबर ग्रंथ पर प्राकृत भाषा में लिखित इस चूर्णि में परिमित शब्दों द्वारा ‘सित्तरि’ की ही मूल गाथाओं का अभिप्राय स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। इसमें ‘कर्म प्रकृति’, ‘शतक’ तथा ‘सत्कर्म’ के साथ ‘कषाय पाहुड़’ का भी निर्देश किया गया उपलब्ध होता है।368। इसके अनेक स्थलों पर ‘शतक’ के नाम से ‘शतक चूर्णि’ (वि.750-1000) का भी नामोल्लेख किया गया प्रतीत होता है।370। आचार्य अभयदेव सूरि (वि.1088-1135) ने इसका अनुसरण करते हुए सप्ततिका पर भाष्य लिखा है।370। और इसी का अर्थावबोध कराने के लिये आचार्य मलयगिरि (वि.श.12) ने सप्ततिका पर टीका लिखी है।368। इसलिये इसका रचना काल वि.श.10-11 माना जा सकता है।370। <span class="GRef">(जैन साहित्य और इतिहास/1/पृष्ठ)</span>। </li> | |||
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Latest revision as of 16:36, 19 February 2024
‘सित्तरि या सप्ततिका’ नामक श्वेतांबर ग्रंथ पर प्राकृत भाषा में लिखित इस चूर्णि में परिमित शब्दों द्वारा ‘सित्तरि’ की ही मूल गाथाओं का अभिप्राय स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। इसमें ‘कर्म प्रकृति’, ‘शतक’ तथा ‘सत्कर्म’ के साथ ‘कषाय पाहुड़’ का भी निर्देश किया गया उपलब्ध होता है।368। इसके अनेक स्थलों पर ‘शतक’ के नाम से ‘शतक चूर्णि’ (वि.750-1000) का भी नामोल्लेख किया गया प्रतीत होता है।370। आचार्य अभयदेव सूरि (वि.1088-1135) ने इसका अनुसरण करते हुए सप्ततिका पर भाष्य लिखा है।370। और इसी का अर्थावबोध कराने के लिये आचार्य मलयगिरि (वि.श.12) ने सप्ततिका पर टीका लिखी है।368। इसलिये इसका रचना काल वि.श.10-11 माना जा सकता है।370। (जैन साहित्य और इतिहास/1/पृष्ठ)।
अधिक जानकारी के लिये देखें चूर्णी ।