समाधिमरण: Difference between revisions
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<span class="GRef"> भगवती आराधना/गाथा </span><span class="PrakritText"> एक्कम्मि भवग्गहणे '''समाधिमरणेण''' जो मदो जीवो। ण हु सो हिंडंदि बहुसो सत्तट्ठभवे पमोत्तूण।682। णियमा सिज्झदि उक्कसएण वा सत्तमम्मि भवे।2086। इय बालपंडियं होदिं मरणमरहंतसासणे दिट्ठं।2087। एवं आराधित्ता उक्कस्साराहणं चदुक्खंधं। कम्मरयविप्पमुक्का तेणेव भवेण सिज्झंति।2160। आराधयित्तु धीरा मज्झिममाराहणं चदुक्खंध। कम्मरयविप्पमुक्का तच्चेण भवेण सिज्झंति।2161। आराधयित्तु धीरा जहण्णमाराहणं चदुक्खंधं। कम्मरयविप्पमुक्का सत्तमजम्मेण सिज्झंति।2162।</span> =<span class="HindiText">1. जो यति एक भव में '''समाधिमरण''' से मरण करता है वह अनेक भव धारणकर संसार में भ्रमण नहीं करता। उसको सात आठ भव धारण करने के पश्चात् अवश्य मोक्ष की प्राप्ति होगी।682। <span class="GRef">(मूलाचार/118)</span>। 2. बालपंडित मरण से मरण करने वाला श्रावक (देखें [[ मरण#1.4 | मरण - 1.4]]) उत्कृष्टता से सात भवों में नियम से सिद्ध होता है।2086-2087। 3. चार प्रकार के इस (दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तप) आराधना को जो उत्कृष्ट रूप से आराधता है वह उसी भव में मुक्त होता है, जो मध्यमरूप से आराधता है वह तृतीय भव से मुक्त होता है, और जो जघन्य रूप से आराधता है वह सातवें भव में सिद्ध होता है।2160-62।</span><br/> | |||
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भगवती आराधना/गाथा एक्कम्मि भवग्गहणे समाधिमरणेण जो मदो जीवो। ण हु सो हिंडंदि बहुसो सत्तट्ठभवे पमोत्तूण।682। णियमा सिज्झदि उक्कसएण वा सत्तमम्मि भवे।2086। इय बालपंडियं होदिं मरणमरहंतसासणे दिट्ठं।2087। एवं आराधित्ता उक्कस्साराहणं चदुक्खंधं। कम्मरयविप्पमुक्का तेणेव भवेण सिज्झंति।2160। आराधयित्तु धीरा मज्झिममाराहणं चदुक्खंध। कम्मरयविप्पमुक्का तच्चेण भवेण सिज्झंति।2161। आराधयित्तु धीरा जहण्णमाराहणं चदुक्खंधं। कम्मरयविप्पमुक्का सत्तमजम्मेण सिज्झंति।2162। =1. जो यति एक भव में समाधिमरण से मरण करता है वह अनेक भव धारणकर संसार में भ्रमण नहीं करता। उसको सात आठ भव धारण करने के पश्चात् अवश्य मोक्ष की प्राप्ति होगी।682। (मूलाचार/118)। 2. बालपंडित मरण से मरण करने वाला श्रावक (देखें मरण - 1.4) उत्कृष्टता से सात भवों में नियम से सिद्ध होता है।2086-2087। 3. चार प्रकार के इस (दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तप) आराधना को जो उत्कृष्ट रूप से आराधता है वह उसी भव में मुक्त होता है, जो मध्यमरूप से आराधता है वह तृतीय भव से मुक्त होता है, और जो जघन्य रूप से आराधता है वह सातवें भव में सिद्ध होता है।2160-62।
अधिक जानकारी के लिये देखें सल्लेखना ।