सम्यक्: Difference between revisions
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<span class="SanskritText"> स.सि./ | <span class="SanskritText"> स.सि./1/1/5/3 सम्यगित्यव्युत्पन्न: शब्दो व्युत्पन्नो वा। अञ्चते: क्वौ समञ्चतीति सम्यगिति। अस्यार्थ: प्रशंसा।</span> =<span class="HindiText">'सम्यक्' शब्द अव्युत्पन्न अर्थात् रौढिक और व्युत्पन्न अर्थात् व्याकरण सिद्ध है। 'सम्' उपसर्ग पूर्वक अञ्च धातु से क्विप् प्रत्यय करने पर 'सम्यक्' शब्द बनता है। संस्कृत में इसकी व्युत्पत्ति 'समञ्चति इति सम्यक्' इस प्रकार होती है। इसका अर्थ प्रशंसा है।</span> | ||
<p><span class="SanskritText">रा.वा./ | <p><span class="SanskritText">रा.वा./1/2/1/19/4 सम्यगित्ययं निपात: प्रशंसार्थो वेदितव्य: सर्वेषां प्रशस्तरूपगतिजातिकुलायुर्विज्ञानादीनाम् आभ्युदयिकानां मोक्षस्य च प्रधानकारणत्वात् । ... ''सम्यगिष्टार्थतत्त्वयो:'' इति वचनात् प्रशंसार्थाभाव इति; तन्न; अनेकार्थत्वान्निपातानाम् । अथवा, सम्यगिति तत्त्वार्थो निपात:, ...अविपरीतार्थविषयं तत्त्वमित्युच्यते। अथवा क्व्यन्तोऽयं शब्द: समञ्चतीति सम्यक् । यथा अर्थोऽवस्थितस्तथैवावगच्छतीत्यर्थ:।</span> =<span class="HindiText">सम्यक् यह प्रशंसार्थक शब्द (निपात) है। यह प्रशस्त रूप, गति, जाति, आयु विज्ञानादि अभ्युदय और नि:श्रेयस का प्रधान कारण होता है। 'सम्यगिष्टार्थतत्त्वयो:' इस प्रमाण के अनुसार सम्यक् शब्द का प्रयोग इष्टार्थ और तत्त्व अर्थ में होता है अत: इसका प्रशंसार्थ उचित नहीं है, इस शंका का समाधान यह है कि निपात शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं। अथवा 'सम्यक्' का अर्थ तत्त्व भी किया जा सकता है।...अथवा यह क्विप् प्रत्ययान्त शब्द है। इसका अर्थ है जो पदार्थ जैसा है उसे वैसा ही जानने वाला।</span></p> | ||
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Revision as of 21:48, 5 July 2020
स.सि./1/1/5/3 सम्यगित्यव्युत्पन्न: शब्दो व्युत्पन्नो वा। अञ्चते: क्वौ समञ्चतीति सम्यगिति। अस्यार्थ: प्रशंसा। ='सम्यक्' शब्द अव्युत्पन्न अर्थात् रौढिक और व्युत्पन्न अर्थात् व्याकरण सिद्ध है। 'सम्' उपसर्ग पूर्वक अञ्च धातु से क्विप् प्रत्यय करने पर 'सम्यक्' शब्द बनता है। संस्कृत में इसकी व्युत्पत्ति 'समञ्चति इति सम्यक्' इस प्रकार होती है। इसका अर्थ प्रशंसा है।
रा.वा./1/2/1/19/4 सम्यगित्ययं निपात: प्रशंसार्थो वेदितव्य: सर्वेषां प्रशस्तरूपगतिजातिकुलायुर्विज्ञानादीनाम् आभ्युदयिकानां मोक्षस्य च प्रधानकारणत्वात् । ... सम्यगिष्टार्थतत्त्वयो: इति वचनात् प्रशंसार्थाभाव इति; तन्न; अनेकार्थत्वान्निपातानाम् । अथवा, सम्यगिति तत्त्वार्थो निपात:, ...अविपरीतार्थविषयं तत्त्वमित्युच्यते। अथवा क्व्यन्तोऽयं शब्द: समञ्चतीति सम्यक् । यथा अर्थोऽवस्थितस्तथैवावगच्छतीत्यर्थ:। =सम्यक् यह प्रशंसार्थक शब्द (निपात) है। यह प्रशस्त रूप, गति, जाति, आयु विज्ञानादि अभ्युदय और नि:श्रेयस का प्रधान कारण होता है। 'सम्यगिष्टार्थतत्त्वयो:' इस प्रमाण के अनुसार सम्यक् शब्द का प्रयोग इष्टार्थ और तत्त्व अर्थ में होता है अत: इसका प्रशंसार्थ उचित नहीं है, इस शंका का समाधान यह है कि निपात शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं। अथवा 'सम्यक्' का अर्थ तत्त्व भी किया जा सकता है।...अथवा यह क्विप् प्रत्ययान्त शब्द है। इसका अर्थ है जो पदार्थ जैसा है उसे वैसा ही जानने वाला।