साधन व्यभिचार: Difference between revisions
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<p class="HindiText">यद्यपि व्याकरण शास्त्र भी शब्द प्रयोग के दोषों को स्वीकार नहीं करता, परंतु कहीं-कहीं अपवादरूप से भिन्न लिंग आदि वाले शब्दों का भी सामानाधिकरण्य रूप से प्रयोग कर देता है। तहाँ शब्दनय उन दोषों का भी निराकरण करता है। उनमें से एक दोष '''साधन व्यभिचार''' है। <p> | |||
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<p class="HindiText">एक साधन अर्थात् एक कारक के स्थान पर दूसरे कारक के प्रयोग करने को '''साधन या कारक व्यभिचार''' कहते हैं। जैसे‒’ग्राममधिशेते’ वह ग्रामों में शयन करता है। यहाँ पर सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति या कारक का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह '''साधन व्यभिचार''' है।<p> | |||
<p class="HindiText"> विस्तार के लिये देखें [[ नय#III.6.8 | नय - III.6.8]]।<p><br> | |||
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Revision as of 13:11, 5 November 2022
यद्यपि व्याकरण शास्त्र भी शब्द प्रयोग के दोषों को स्वीकार नहीं करता, परंतु कहीं-कहीं अपवादरूप से भिन्न लिंग आदि वाले शब्दों का भी सामानाधिकरण्य रूप से प्रयोग कर देता है। तहाँ शब्दनय उन दोषों का भी निराकरण करता है। उनमें से एक दोष साधन व्यभिचार है।
राजवार्तिक/1/33/9/98/14
एक साधन अर्थात् एक कारक के स्थान पर दूसरे कारक के प्रयोग करने को साधन या कारक व्यभिचार कहते हैं। जैसे‒’ग्राममधिशेते’ वह ग्रामों में शयन करता है। यहाँ पर सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति या कारक का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह साधन व्यभिचार है।
विस्तार के लिये देखें नय - III.6.8।