सामान्याधिकरण: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="SanskritText">भिन्नप्रवृत्तिनिमित्तानां शब्दानामेकस्मिन्नर्थे वृत्ति: सामान्याधिकरण्यम् । यथा 'तत् त्वमसि'।</span> =<span class="HindiText">भिन्न-भिन्न अर्थों की प्रवृत्ति में निमित्तभूत जो शब्द उनकी एक ही अर्थ में वृत्ति होना सामान्याधिकरण्य है। जैसे 'तत्त्वमसि' इस पद में 'तत्' का अर्थ अशरीरी ब्रह्म और 'त्वम्' का अर्थ शरीरी ब्रह्म अर्थात् जीवात्मा। ये दोनों एक हैं, ऐसे इस पद का अर्थ है। | <span class="SanskritText">भिन्नप्रवृत्तिनिमित्तानां शब्दानामेकस्मिन्नर्थे वृत्ति: सामान्याधिकरण्यम् । यथा 'तत् त्वमसि'।</span> =<span class="HindiText">भिन्न-भिन्न अर्थों की प्रवृत्ति में निमित्तभूत जो शब्द उनकी एक ही अर्थ में वृत्ति होना सामान्याधिकरण्य है। जैसे 'तत्त्वमसि' इस पद में 'तत्' का अर्थ अशरीरी ब्रह्म और 'त्वम्' का अर्थ शरीरी ब्रह्म अर्थात् जीवात्मा। ये दोनों एक हैं, ऐसे इस पद का अर्थ है। 2. लक्ष्य लक्षण में <strong>सामानाधिकरण्य</strong>।-देखें [[ लक्षण ]]।</span> | ||
<noinclude> | |||
[[ | [[ सामान्यतोदृष्ट | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:स]] | [[ सामान्यावलोकन | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: स]] |
Revision as of 21:48, 5 July 2020
भिन्नप्रवृत्तिनिमित्तानां शब्दानामेकस्मिन्नर्थे वृत्ति: सामान्याधिकरण्यम् । यथा 'तत् त्वमसि'। =भिन्न-भिन्न अर्थों की प्रवृत्ति में निमित्तभूत जो शब्द उनकी एक ही अर्थ में वृत्ति होना सामान्याधिकरण्य है। जैसे 'तत्त्वमसि' इस पद में 'तत्' का अर्थ अशरीरी ब्रह्म और 'त्वम्' का अर्थ शरीरी ब्रह्म अर्थात् जीवात्मा। ये दोनों एक हैं, ऐसे इस पद का अर्थ है। 2. लक्ष्य लक्षण में सामानाधिकरण्य।-देखें लक्षण ।