सुप्रीति क्रिया: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> महापुराण/38/70-310 </span><span class="SanskritText">आधानं नाम गर्भादौ संस्कारो मंत्रपूर्वक:। पत्नीमृतुमतीं स्नातां पुरस्कृत्यार्हदिज्यया।70। ...अत्रापि पूर्ववद्दानं जैनी पूजा च पूर्ववत् । इष्टबंधसमाह्वानं समाशादिश्च लक्ष्यताम् ।97। ...क्रियाग्रनिर्वृतिर्नाम परानिर्वाणमायुष:। स्वभावजनितामूर्ध्वव्रज्यामास्कनदतो मता।309।</span></p> | |||
<span class="SanskritText">इति निर्वाणपर्यंता: क्रिया गर्भादिका: सदा। भव्यात्मभिरनुष्ठेया: त्रिपंचाशत्समुच्चायात् ।310।</span> | |||
<span class="HindiText"> <strong>1</strong>. गर्भाधान क्रिया - ऋतुमती स्त्री के चतुर्थ स्नान के पश्चात्, गर्भाधान के पहले, अर्हंतदेव की पूजा के द्वारा मंत्र पूर्वक जो संस्कार किया जाता है, उसे आधान क्रिया कहते हैं।70। भगवान् के सामने तीन अग्नियों की अर्हंतकुंड, गणधरकुंड, व केवली कुंड में स्थानपा करके भगवान् की पूजा करें। तत्पश्चात् आहुति दें। फिर केवल पुत्रोत्पत्ति की इच्छा से भोगाभिलाष निरपेक्ष स्त्रीसंसर्ग करें। इस प्रकार यह आधानक्रिया विधि है।71-76। ..... <strong>3. सुप्रीति क्रिया</strong> - गर्भाधान के पाँचवें महीने पुन: पूर्वोक्त प्रकार भगवान् की पूजा करे।80-81। .....</span> | |||
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Latest revision as of 10:31, 24 February 2024
महापुराण/38/70-310 आधानं नाम गर्भादौ संस्कारो मंत्रपूर्वक:। पत्नीमृतुमतीं स्नातां पुरस्कृत्यार्हदिज्यया।70। ...अत्रापि पूर्ववद्दानं जैनी पूजा च पूर्ववत् । इष्टबंधसमाह्वानं समाशादिश्च लक्ष्यताम् ।97। ...क्रियाग्रनिर्वृतिर्नाम परानिर्वाणमायुष:। स्वभावजनितामूर्ध्वव्रज्यामास्कनदतो मता।309।
इति निर्वाणपर्यंता: क्रिया गर्भादिका: सदा। भव्यात्मभिरनुष्ठेया: त्रिपंचाशत्समुच्चायात् ।310। 1. गर्भाधान क्रिया - ऋतुमती स्त्री के चतुर्थ स्नान के पश्चात्, गर्भाधान के पहले, अर्हंतदेव की पूजा के द्वारा मंत्र पूर्वक जो संस्कार किया जाता है, उसे आधान क्रिया कहते हैं।70। भगवान् के सामने तीन अग्नियों की अर्हंतकुंड, गणधरकुंड, व केवली कुंड में स्थानपा करके भगवान् की पूजा करें। तत्पश्चात् आहुति दें। फिर केवल पुत्रोत्पत्ति की इच्छा से भोगाभिलाष निरपेक्ष स्त्रीसंसर्ग करें। इस प्रकार यह आधानक्रिया विधि है।71-76। ..... 3. सुप्रीति क्रिया - गर्भाधान के पाँचवें महीने पुन: पूर्वोक्त प्रकार भगवान् की पूजा करे।80-81। .....
अधिक जानकारी के लिये देखें संस्कार - 2.2।