स्तेय
From जैनकोष
त.सू./७/१५ (प्रमत्तयोगात्) अदत्तादानं स्तेयम् ।१५।
स.सि./७/१५/३५२/१२ आदानं ग्रहणमदत्तस्यादानमदत्तादानं स्तेय मित्युच्यते।...दानादाने यत्र संभवतस्तत्रैव स्तेयव्यवहार:। = बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय है।१५। आदान शब्द का अर्थ ग्रहण है। बिना दी हुई वस्तु का लेना अदत्तादान है और यही स्तेय चोरी कहलाता है...जहाँ देना और लेना सम्भव हैं वहीं स्तेय का व्यवहार होता है। (रा.वा./७/१५/२/५४२/१५)
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