Category:आध्यात्मिक भक्ति
From जैनकोष
विभिन्न कवियों द्वारा रचित आध्यात्मिक भक्ति
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स
- संसार महा अघसागर में
- संसारमें साता नाहीं वे
- सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय
- सफल है धन्य धन्य वा घरी
- सब जगको प्यारा, चेतनरूप निहारा
- सबसों छिमा छिमा कर जीव!
- सम्यग्ज्ञान बिना, तेरो जनम अकारथ जाय
- सहज अबाध समाध धाम तहाँ
- सारौ दिन निरफल खोयबौ करै छै
- सुन चेतन इक बात
- सुनि ठगनी माया, तैं सब जग ठग खाया
- सुनि सुजान! पाँचों रिपु वश करि
- सुनो जिया ये सतगुरु की बातैं
- सुनो! जैनी लोगो, ज्ञानको पंथ कठिन है
- सुमर सदा मन आतमराम
- सो ज्ञाता मेरे मन माना, जिन निज-निज पर पर जाना
- सो मत सांचो है मन मेरे
- सोग न कीजे बावरे! मरें पीतम लोग
- सौ सौ बार हटक नहिं मानी
ह
- हम तो कबहुँ न निज घर आये
- हम तो कबहुँ न निजगुन भाये
- हम तो कबहूँ न हित उपजाये
- हम न किसीके कोई न हमारा, झूठा है जगका ब्योहारा
- हम लागे आतमरामसों
- हमकौं कछू भय ना रे
- हमारे ये दिन यों ही गये जी
- हमारो कारज ऐसे होय 2
- हमारो कारज कैसें होय 1
- हरी तेरी मति नर कौनें हरी
- हे नर, भ्रमनींद क्यों न छांडत दुखदाई
- हे मन तेरी को कुटेव यह
- हो भैया मोरे! कहु कैसे सुख होय
- होरी खेलौंगी, घर आये चिदानंद कन्त