दु:खहरण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> एक व्रत । इसमें सात भूमियों की जघन्य और उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से चौदह, तिर्यंचगति और मानवगति के पर्याप्तक-अपर्याप्तक जीवों की द्विविध आयु की अपेक्षा से चार-चार, सौधर्म से अच्युत स्वर्ग तक चौबीस-चौबीस, नौ ग्रैवेयकों के अठारह, नौ अनुदिशों के दो और पाँच अनुत्तर विमानों के दो इस प्रकार कुल अड़सठ उपवास किये जाते हैं । दो उपवासों के बाद एक पारणा करने से यह व्रत एक सौ दो दिन में पूर्ण होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.117-120 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक व्रत । इसमें सात भूमियों की जघन्य और उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से चौदह, तिर्यंचगति और मानवगति के पर्याप्तक-अपर्याप्तक जीवों की द्विविध आयु की अपेक्षा से चार-चार, सौधर्म से अच्युत स्वर्ग तक चौबीस-चौबीस, नौ ग्रैवेयकों के अठारह, नौ अनुदिशों के दो और पाँच अनुत्तर विमानों के दो इस प्रकार कुल अड़सठ उपवास किये जाते हैं । दो उपवासों के बाद एक पारणा करने से यह व्रत एक सौ दो दिन में पूर्ण होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#117|हरिवंशपुराण - 34.117-120]] </span></p> | ||
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Revision as of 15:10, 27 November 2023
एक व्रत । इसमें सात भूमियों की जघन्य और उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से चौदह, तिर्यंचगति और मानवगति के पर्याप्तक-अपर्याप्तक जीवों की द्विविध आयु की अपेक्षा से चार-चार, सौधर्म से अच्युत स्वर्ग तक चौबीस-चौबीस, नौ ग्रैवेयकों के अठारह, नौ अनुदिशों के दो और पाँच अनुत्तर विमानों के दो इस प्रकार कुल अड़सठ उपवास किये जाते हैं । दो उपवासों के बाद एक पारणा करने से यह व्रत एक सौ दो दिन में पूर्ण होता है । हरिवंशपुराण - 34.117-120