दर्शनपाहुड गाथा 25: Difference between revisions
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आगे इसी को दृढ़ करते हैं -<br> | आगे इसी को दृढ़ करते हैं -<br> | ||
अमराण वंदियाणं रूवं दट्ठूण सीलसहियाणं । जे गारवं करंति य सम्मत्तविवज्जिया होंति ।।२५।।<br> | <p class="PrakritGatha"> | ||
अमर वंदित शील मण्डित रूप को भी देखकर । ना नमें गारब करें जो सम्यक्त्व विरहित जीव वे ।।२५।।<br> | अमराण वंदियाणं रूवं दट्ठूण सीलसहियाणं ।<br> | ||
जे गारवं करंति य सम्मत्तविवज्जिया होंति ।।२५।।<br> | |||
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<p class="SanskritGatha"> | |||
अमरै: वंदितानां रूपं दृष्टवा शीलसहितानाम् ।<br> | |||
ये गौरवं कुर्वन्ति च सम्यक्त्वविवर्जिता: भवंति ।।२५।।<br> | |||
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<p class="HindiGatha"> | |||
अमर वंदित शील मण्डित रूप को भी देखकर ।<br> | |||
ना नमें गारब करें जो सम्यक्त्व विरहित जीव वे ।।२५।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> देवों से वंदने योग्य शीलसहित जिनेश्वरदेव के यथाजातरूप को देखकर जो गौरव करते हैं, विनयादिक नहीं करते हैं, वे सम्यक्त्व से रहित हैं । </p> | <p><b> अर्थ - </b> देवों से वंदने योग्य शीलसहित जिनेश्वरदेव के यथाजातरूप को देखकर जो गौरव करते हैं, विनयादिक नहीं करते हैं, वे सम्यक्त्व से रहित हैं । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> जिस यथाजातरूप को देखकर अणिमादिक ऋद्धियों के धारक देव भी चरणों में गिरते हैं, उसको देखकर मत्सरभाव से नमस्कार नहीं करते हैं, उनके सम्यक्त्व कैसा ? वे सम्यक्त्व से रहित ही हैं ।।२५।।<br> | <p><b> भावार्थ -</b> जिस यथाजातरूप को देखकर अणिमादिक ऋद्धियों के धारक देव भी चरणों में गिरते हैं, उसको देखकर मत्सरभाव से नमस्कार नहीं करते हैं, उनके सम्यक्त्व कैसा ? वे सम्यक्त्व से रहित ही हैं ।।२५।।<br> |
Latest revision as of 04:59, 8 December 2008
आगे इसी को दृढ़ करते हैं -
अमराण वंदियाणं रूवं दट्ठूण सीलसहियाणं ।
जे गारवं करंति य सम्मत्तविवज्जिया होंति ।।२५।।
अमरै: वंदितानां रूपं दृष्टवा शीलसहितानाम् ।
ये गौरवं कुर्वन्ति च सम्यक्त्वविवर्जिता: भवंति ।।२५।।
अमर वंदित शील मण्डित रूप को भी देखकर ।
ना नमें गारब करें जो सम्यक्त्व विरहित जीव वे ।।२५।।
अर्थ - देवों से वंदने योग्य शीलसहित जिनेश्वरदेव के यथाजातरूप को देखकर जो गौरव करते हैं, विनयादिक नहीं करते हैं, वे सम्यक्त्व से रहित हैं ।
भावार्थ - जिस यथाजातरूप को देखकर अणिमादिक ऋद्धियों के धारक देव भी चरणों में गिरते हैं, उसको देखकर मत्सरभाव से नमस्कार नहीं करते हैं, उनके सम्यक्त्व कैसा ? वे सम्यक्त्व से रहित ही हैं ।।२५।।