मेरे कब ह्वै वा दिन की सुघरी: Difference between revisions
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मेरे कब ह्वै वा दिन की सुघरी ।।टेक ।।
तन विन वसन असनविन वनमें, निवसों नासादृष्टिधरी ।।
पुण्यपाप परसौं कब विरचों, परचों निजनिधि चिरविसरी ।
तज उपाधि सजि सहजसमाधी, सहों घाम हिम मेघझरी ।।१ ।।
कब थिरजोग धरों ऐसो मोहि, उपल जान मृग खाज हरी ।
ध्यान-कमान तान अनुभव-शर, छेदों किहि दिन मोह अरी ।।२ ।।
कब तृनकंचन एक गनों अरु, मनिजडितालय शैलदरी ।
`दौलत' सत गुरुचरन सेव जो, पुरवो आश यहै हमरी ।।३ ।।