योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 292: Difference between revisions
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शुद्ध आत्मा के ध्यान से कर्मो की निर्जरा -
ज्ञेय-लक्ष्येण विज्ञाय स्वरूपं परमात्मन : ।
व्यावृत्त्य लक्ष्यत: शुद्धं ध्यायतो हानिरंहसाम् ।।२९२।।
अन्वय :- ज्ञेय-लक्ष्येण परमात्मन: स्वरूपं विज्ञाय लक्ष्यत: व्यावृत्त्य शुद्धं ध्यायत: अंहसां हानि: (जायते) ।
सरलार्थ :- ज्ञेय के लक्ष्य द्वारा परमात्मा के स्वरूप को जानकर और लक्ष्यरूप से व्यावृत होकर शुद्ध स्वरूप का ध्यान करनेवाले के कर्मो का नाश होता है ।