योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 323: Difference between revisions
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कर्मों के नाश के समान ज्ञान का नाश नहीं -
दुरितानीव न ज्ञानं निर्वृतस्यापि गच्छति ।
काञ्चनस्य मले नष्टे काञ्चनत्वं न नश्यति ।।३२३।।
अन्वय :- (यथा) काञ्चनस्य मले नष्टे काञ्चनत्वं न नश्यति (तथा एव) निर्वृतस्य (सिद्धस्य) अपि दुरितानि इव ज्ञानं न गच्छति ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार अशुद्ध सुवर्ण को शुद्ध करते समय सुवर्ण में से अशुद्धता नष्ट होती है; तथापि सुवर्ण नष्ट नहीं होता, उसीप्रकार मुक्तात्मा/सिद्धात्मा के ज्ञानावरणादि आठों कर्मो के नाश के समान सिद्धों के ज्ञान गुण का नाश नहीं होता ।