योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 492: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: नामकर्मजन्य अवस्थाओं से आत्मा सदा भिन्न - <p class="SanskritGatha"> स्थावरा: कार्मणा: स...) |
(No difference)
|
Latest revision as of 08:29, 22 January 2009
नामकर्मजन्य अवस्थाओं से आत्मा सदा भिन्न -
स्थावरा: कार्मणा: सन्ति विकारास्तेsपि नात्मन: ।
शाश्वच्छुद्धस्वभावस्य सूर्यस्येव घनादिजा: ।।४९३।।
अन्वय :- घनादिजा: (विकारा:) शाश्वत्-शुद्ध-स्वभावस्य सूर्यस्य इव कार्मणा: स्थावरा: विकारा: ते अपि आत्मन: न सन्ति ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार आकाश में मेघ आदि के निमित्त से सूर्य के प्रकाश में उत्पन्न होनेवाले भिन्न-भिन्न आकाररूप विकार, अनादि से शुद्ध स्वभावरूप सूर्य के नहीं हो सकते अर्थात् मेघजन्य विकार और सूर्य दोनों एक-दूसरे से भिन्न ही रहते हैं; उसीप्रकार नामकर्म के उदय के निमित्त से पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पतिरूप एकेंद्रिय जीवों का स्थावररूप आकार शुद्ध स्वभावरूप जीव नहीं हो सकते अर्थात् स्थावररूप आकार और शुद्ध जीव दोनों एक-दूसरे से भिन्न ही हैं ।