योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 531: Difference between revisions
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ज्ञान के दो भेद -
ज्ञानं वैषयिकं पुंस: सर्वं पौद्गलिकं मतम् ।
विषयेभ्य: परावृत्तमात्मीयमपरं पुन: ।।५३२।।
अन्वय : - पंुस: वैषयिकं ज्ञानं सर्वं पौद्गलिकं मतम् । पुन: विषयेभ्य: परावृत्तं अपरं (सर्वं ज्ञानं) आत्मीयं मतम् ।
सरलार्थ :- स्पर्शनेंद्रियादि पाँचों इंद्रियों के निमित्त से उत्पन्न होनेवाला स्पर्शादि विषयों का जितना भी जो ज्ञान है, उसे पौद्गलिक कहते हैं और स्पर्शादि विषयों से परावृत्त अर्थात् इंद्रियों के निमित्तों के बिना होनेवाले दूसरे ज्ञान को आत्मीय ज्ञान कहते हैं ।