योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 344: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: आत्मध्यान की अंतरंग सामग्री - <p class="SanskritGatha"> आगमेनानुानेन ध्यानाभ्यास-रसे...) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
आत्मध्यान की अंतरंग सामग्री - | आत्मध्यान की अंतरंग सामग्री - | ||
< | |||
आगमेनानुानेन ध्यानाभ्यास-रसेन च ।<br /> | |||
त्रेधा विशोधयन् बुद्धिं ध्यानमाप्नोति पावनम् ।।३४४।।<br /> | |||
''' अन्वय ''':- आगमेन अनुमानेन ध्यानाभ्यास-रसेन च त्रेधा (स्व) बुद्धिं विशोधयन् (ध्यातासाधक:) पावनं ध्यानं आप्नोति । | |||
''' सरलार्थ ''':- आगम से, अनुमान ज्ञान से और ध्यानाभ्यासरूप रस से - इन तीन प्रकार की पद्धति से अपनी बुद्धि को विशुद्ध करनेवाला ध्याता/साधक, पवित्र आत्मध्यान को प्राप्त होता है । | |||
[[योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 343 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 343 | पिछली गाथा]] | ||
[[योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 345 | अगली गाथा]] | [[योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 345 | अगली गाथा]] | ||
Revision as of 20:47, 2 September 2020
आत्मध्यान की अंतरंग सामग्री -
आगमेनानुानेन ध्यानाभ्यास-रसेन च ।
त्रेधा विशोधयन् बुद्धिं ध्यानमाप्नोति पावनम् ।।३४४।।
अन्वय :- आगमेन अनुमानेन ध्यानाभ्यास-रसेन च त्रेधा (स्व) बुद्धिं विशोधयन् (ध्यातासाधक:) पावनं ध्यानं आप्नोति ।
सरलार्थ :- आगम से, अनुमान ज्ञान से और ध्यानाभ्यासरूप रस से - इन तीन प्रकार की पद्धति से अपनी बुद्धि को विशुद्ध करनेवाला ध्याता/साधक, पवित्र आत्मध्यान को प्राप्त होता है ।