व्याप्ति: Difference between revisions
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<p> न्यायदीपिका/3/64/104/2 <span class="SanskritText">व्याप्तिर्हि साध्ये वह्नयादौ सत्येव साधनं धूमादिरस्ति, असति तु नास्तीति साध्यसाधननियतसाहचर्यलक्षणम् । एतामेव साध्यं विना साधनस्याभावादविनाभावमिति च व्यपदिश्यंते। </span>= <span class="HindiText">साध्य अग्नि आदि के होने पर ही साधन धूमादिक होते हैं तथा उनके नहीं होने पर नहीं होते, इस प्रकार के साहचर्यरूप साध्य साधन के नियम को व्याप्ति कहते हैं। इस व्याप्ति को ही साध्य के बिना साधन के न होने से अविनाभाव कहते हैं।–(विशेष देखें [[ तर्क व दृष्टांत#1.1 | तर्क व दृष्टांत - 1.1]])। </span><br /> | <p><span class="GRef"> न्यायदीपिका/3/64/104/2 </span><span class="SanskritText">व्याप्तिर्हि साध्ये वह्नयादौ सत्येव साधनं धूमादिरस्ति, असति तु नास्तीति साध्यसाधननियतसाहचर्यलक्षणम् । एतामेव साध्यं विना साधनस्याभावादविनाभावमिति च व्यपदिश्यंते। </span>= <span class="HindiText">साध्य अग्नि आदि के होने पर ही साधन धूमादिक होते हैं तथा उनके नहीं होने पर नहीं होते, इस प्रकार के साहचर्यरूप साध्य साधन के नियम को व्याप्ति कहते हैं। इस व्याप्ति को ही साध्य के बिना साधन के न होने से अविनाभाव कहते हैं।–(विशेष देखें [[ तर्क व दृष्टांत#1.1 | तर्क व दृष्टांत - 1.1]])। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/894 </span><span class="SanskritGatha"> व्याप्तित्वं साहचर्यस्य नियमः स यथा मिथः। सति यत्र यः स्यादेव न स्यादेवासतीह यः।894। </span>=<span class="HindiText"> परस्पर में सहचर नियम को व्याप्ति कहते हैं । वह इस प्रकार है, कि यहाँ पर जिसके होने पर जो होवें और जिसके न होने पर जो नहीं ही होवें ।–(विशेष देखें [[ तर्क ]]) <br /> | |||
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Revision as of 13:02, 14 October 2020
न्यायदीपिका/3/64/104/2 व्याप्तिर्हि साध्ये वह्नयादौ सत्येव साधनं धूमादिरस्ति, असति तु नास्तीति साध्यसाधननियतसाहचर्यलक्षणम् । एतामेव साध्यं विना साधनस्याभावादविनाभावमिति च व्यपदिश्यंते। = साध्य अग्नि आदि के होने पर ही साधन धूमादिक होते हैं तथा उनके नहीं होने पर नहीं होते, इस प्रकार के साहचर्यरूप साध्य साधन के नियम को व्याप्ति कहते हैं। इस व्याप्ति को ही साध्य के बिना साधन के न होने से अविनाभाव कहते हैं।–(विशेष देखें तर्क व दृष्टांत - 1.1)।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/894 व्याप्तित्वं साहचर्यस्य नियमः स यथा मिथः। सति यत्र यः स्यादेव न स्यादेवासतीह यः।894। = परस्पर में सहचर नियम को व्याप्ति कहते हैं । वह इस प्रकार है, कि यहाँ पर जिसके होने पर जो होवें और जिसके न होने पर जो नहीं ही होवें ।–(विशेष देखें तर्क )
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