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| <p> मनुष्य जाति का एक भेद-आर्येतर महापुराण । थे सदाचारादि गुणो से रहित और धर्म-कर्म से हीन होते हुए भी अन्य चरणों से समान होते हैं । भरतेश चक्रवर्ती ने इन्हें अपने अधीन किया था और इनसे उपभोग के योग्य कन्या आदि रत्न प्राप्त किये थे । ये हिंसाचार, मांसाहार, पर-धनहरण और धूर्तता करने में आनन्द मनाते थे । ये अर्धवर्वर देश में रहते थे । जनक के देश को इन्होंने उजाड़ने का उद्यम किया था किन्तु थे सफल नहीं हो सके थे । जनक के निवेदन मर राम-लक्ष्मण ने वहाँ पहुँचकर उन्हें परास्त कर दिया था । पराजित होकर ये सह्य और विंध्य पर्वतों पर रहने लगे थे । ये लाल रंग का शिरस्त्राण धारण करते थे । इनका शरीर पुष्ट और अंजन के समान काला, सूखे पत्तों के समान कांति वाला तथा लाल रंग का होता था । ये पत्ते पहिनते थे । हाथों में ये हथियार लिये रहते थे । मांस इनका भोजन था । इनकी ध्वजाओं में वराह, महिष, व्याघ्र, वृक और कंक चिह्न अकित रहते थे । महापुराण 31.141-142, 42.184 पद्मपुराण 14.41, 26.101, 27.5-6, 10-11, 67-73</p>
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| [[Category: पुराण-कोष]]
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| [[Category: म]]
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