मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-15: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:56, 17 May 2021
चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्री निषद्याक्रोशयाचनासत्कार पुरस्कारा: ।। 9-15 ।।
चारित्रमोह के उदय में संभावित सात परीषहों का निर्देश―चारित्रमोह के उदय से नाग्न्य―परीषह, अरतिपरीषह, स्त्रीपरीषह निषद्यापरीषह, आक्रोशपरीषह, याचनापरीषह और सत्कार पुरस्कारपरीषह होते हैं । इस सूत्र के इन 7 परीषहों का कारण पुरुषवेद आदिक चारित्रमोह का उदय है और दर्शनमोह के कारण अदर्शनपरीषह होता है, यह इससे पूर्व सूत्र में कहा गया है । तो उस समेत ये सब 8 परीषह मोहनीय संबंधी बताये गए थे । यहाँ चारित्रमोहकृत परीषहों का वर्णन चल रहा है । नग्न हो जाने पर भी जो भीतर में संकोच हो जाता है वह चारित्रमोह के उदय से होता है । अरतिभाव तो चारित्रमोह के उदय से है ही, स्त्रीसमागम होने पर या स्त्री विषयक विचार होने पर जो एक परीषह आता है वह पुरुषवेद मोहनीय के उदय से हुई । बैठने में जहाँ बाधा सी विदित होती है और कुछ कष्ट सा होता है तो वह चारित्रमोह के उदय की ही तो बात है । गाली सुनने पर बुरा लगना अथवा कोई अलाभ होने पर याचना का प्रसंग आना या किसी गोष्ठी में सत्कार पुरस्कार न हो सकने का खेद संपादित होना यह सब चारित्रमोह के उदय से ही संभव है । मोह के उदय से ही प्राणी हिंसा के परिणाम होते हैं । इन प्राणियों की हिंसा न हो सके उस संयम के पालन के लिए ही एक आसन से बैठे रहने का संकल्प था, पर उसमें कोई अड़चन आयी तो समझना चाहिए कि उनके चारित्रमोह के उदय से ही तो हुई । तो ये समस्त परीषहें चारित्रमोह के उदय में होते है ।