उपचरित स्वभाव: Difference between revisions
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<span class="GRef"> आलापपद्धति/6 </span><span class="SanskritText">स्वभावस्याप्यन्यत्रोपचारादुपचरितस्वभाव:। स द्वेधा-कर्मजस्वाभाविकभेदात् । यथा जीवस्य मूर्तत्वमचैतन्यत्वं, यथा सिद्धानां परज्ञता परदर्शकत्वं च। एवमितरेषां द्रव्याणामुपचारो यथासंभवो ज्ञेय:।</span> | <span class="GRef"> आलापपद्धति/6 </span><span class="SanskritText">स्वभावस्याप्यन्यत्रोपचारादुपचरितस्वभाव:। स द्वेधा-कर्मजस्वाभाविकभेदात् । यथा जीवस्य मूर्तत्वमचैतन्यत्वं, यथा सिद्धानां परज्ञता परदर्शकत्वं च। एवमितरेषां द्रव्याणामुपचारो यथासंभवो ज्ञेय:।</span> | ||
<span class="HindiText">=स्वभाव का भी अन्यत्र उपचार करने से उपचरित स्वभाव होता है। वह उपचरित स्वभाव कर्मज और स्वाभाविक के भेद से दो प्रकार का है। जैसे जीव का मूर्तत्व और अचेतनत्व कर्मजस्वभाव है। और सिद्धों का पर को देखना, पर को जानना स्वाभाविक स्वभाव है। इस प्रकार दूसरे द्रव्यों का उपचार भी यथासंभव जानना चाहिए।</span></p> | <span class="HindiText">=स्वभाव का भी अन्यत्र उपचार करने से उपचरित स्वभाव होता है। वह '''उपचरित स्वभाव''' कर्मज और स्वाभाविक के भेद से दो प्रकार का है। जैसे जीव का मूर्तत्व और अचेतनत्व कर्मजस्वभाव है। और सिद्धों का पर को देखना, पर को जानना स्वाभाविक स्वभाव है। इस प्रकार दूसरे द्रव्यों का उपचार भी यथासंभव जानना चाहिए।</span></p> | ||
<p class="HindiText">देखें [[ स्वभाव#1 | स्वभाव - 1]]</p> | <p class="HindiText">देखें [[ स्वभाव#1 | स्वभाव - 1]]</p> |
Latest revision as of 16:18, 23 January 2023
आलापपद्धति/6 स्वभावस्याप्यन्यत्रोपचारादुपचरितस्वभाव:। स द्वेधा-कर्मजस्वाभाविकभेदात् । यथा जीवस्य मूर्तत्वमचैतन्यत्वं, यथा सिद्धानां परज्ञता परदर्शकत्वं च। एवमितरेषां द्रव्याणामुपचारो यथासंभवो ज्ञेय:।
=स्वभाव का भी अन्यत्र उपचार करने से उपचरित स्वभाव होता है। वह उपचरित स्वभाव कर्मज और स्वाभाविक के भेद से दो प्रकार का है। जैसे जीव का मूर्तत्व और अचेतनत्व कर्मजस्वभाव है। और सिद्धों का पर को देखना, पर को जानना स्वाभाविक स्वभाव है। इस प्रकार दूसरे द्रव्यों का उपचार भी यथासंभव जानना चाहिए।
देखें स्वभाव - 1