दु:षमा: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> व्यवहार काल के दो भेदों में अवसर्पिणी काल का पाँचवाँ और उत्सर्पिणी काल का दूसरा भेद । अवसर्पिणी में इस काल के प्रभाव से मनुष्यों की बुद्धि, बल उत्तरोत्तर कम होता जाता है । यह इक्कीस हजार वर्ष का होता है । आरंभ में मनुष्यों की आयु एक सौ बीस वर्ष, शारीरिक अवगाहना सात हाथ, बुद्धि मंद, देह रुक्ष, रूप अभद्र होगा । वे कुटिल कामासक्त और अनेक बार के आहारी होगे, ह्रास होते-होते अंत में आयु बीस वर्ष तथा शारीरिक अवगाहना दो हाथ प्रमाण रह जायगी । इस काल में देवागमन नहीं होगा, केवलज्ञानी बलभद्र नारायण और चक्रवर्ती नहीं होंगे । प्रजा दुष्ट होगी, व्रतविहीना और नि:शील होगी । <span class="GRef"> महापुराण 2.136, 3.17-18,76.394-396, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#91|पद्मपुराण - 20.91-10]]3, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_7#95|हरिवंशपुराण - 7.95]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.119-121 </span>। इस काल के एक हजार वर्ष बीतने पर कल्किराज का शासन होगा । प्रति एक हजार वर्ष में एक-एक कल्कि होने से बीस कल्कि होंगे । जलमंथन अंतिम कल्कि राजा होगा, अंतिम मुनि-वीरांगज, आर्यिका-सर्वश्री, श्रावक-अग्निल और श्राविका― फल्गुसेना होगी । ये सब अयोध्या के वासी होंगे । इस काल के | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> व्यवहार काल के दो भेदों में अवसर्पिणी काल का पाँचवाँ और उत्सर्पिणी काल का दूसरा भेद । अवसर्पिणी में इस काल के प्रभाव से मनुष्यों की बुद्धि, बल उत्तरोत्तर कम होता जाता है । यह इक्कीस हजार वर्ष का होता है । आरंभ में मनुष्यों की आयु एक सौ बीस वर्ष, शारीरिक अवगाहना सात हाथ, बुद्धि मंद, देह रुक्ष, रूप अभद्र होगा । वे कुटिल कामासक्त और अनेक बार के आहारी होगे, ह्रास होते-होते अंत में आयु बीस वर्ष तथा शारीरिक अवगाहना दो हाथ प्रमाण रह जायगी । इस काल में देवागमन नहीं होगा, केवलज्ञानी बलभद्र नारायण और चक्रवर्ती नहीं होंगे । प्रजा दुष्ट होगी, व्रतविहीना और नि:शील होगी । <span class="GRef"> महापुराण 2.136, 3.17-18,76.394-396, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#91|पद्मपुराण - 20.91-10]]3, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_7#95|हरिवंशपुराण - 7.95]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.119-121 </span>। इस काल के एक हजार वर्ष बीतने पर कल्किराज का शासन होगा । प्रति एक हजार वर्ष में एक-एक कल्कि होने से बीस कल्कि होंगे । जलमंथन अंतिम कल्कि राजा होगा, अंतिम मुनि-वीरांगज, आर्यिका-सर्वश्री, श्रावक-अग्निल और श्राविका― फल्गुसेना होगी । ये सब अयोध्या के वासी होंगे । इस काल के साढ़े आठ मास शेष रहने पर ये सभी मुनि-आर्यिका श्रावक-श्राविका शरीर त्याग कर कार्तिक मास की अमावस्या के दिन प्रात: वेला में स्वाति नक्षत्र के समय प्रथम स्वर्ग जायेंगे । सन्यास में राजा का नाश होगा और सायं वेला में अग्नि, षट्कर्म, कुल, देश धर्म सभी अपने-अपने विनाश के हेतु प्राप्त कर नष्ट हो जावेंगे । <span class="GRef"> महापुराण 76.397-415, 428-438, </span>उत्सर्पिणी के इस दूसरे काल में मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु बीस वर्ष और ऊँचाई साढ़े तीन हाथ होगी मनुष्य अनाचार का त्याग कर परिमित समय पर आहार लेंगे, भोजन अग्नि पर बनाया जावेगा, भूमि, जल और धान्य की वृद्धि होगी, मैत्री, लज्जा, सत्य, दया, दमन, संतोष, विनय, क्षमा, रागद्वेष की मंदता आदि चारित्र प्रकट होंगे । इसी काल में अनुक्रम से निर्मल बुद्धि के धारक सोलह कुलकर उत्पन्न होंगे, उनमें प्रथम कुलकर का शरीर चार हाथ प्रमाण होगा । कुलकर क्रमश: ये होंगे― कनक, कनकप्रभ, कनकराज, कनकध्वज, कनकपुंगव, नलिन, नलिनप्रभ, नलिनराज, नलिनध्वज, नलिनपुंगव, पद्म, पद्मप्रभ, पद्मराज, पद्मध्वज, पद्मपुंगव और महापद्म । ये सभी बुद्धि और बल से संपन्न होंगे । इस काल का समय इक्कीस हजार वर्ष का होता है । <span class="GRef"> महापुराण 76.460-466 </span></p> | ||
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व्यवहार काल के दो भेदों में अवसर्पिणी काल का पाँचवाँ और उत्सर्पिणी काल का दूसरा भेद । अवसर्पिणी में इस काल के प्रभाव से मनुष्यों की बुद्धि, बल उत्तरोत्तर कम होता जाता है । यह इक्कीस हजार वर्ष का होता है । आरंभ में मनुष्यों की आयु एक सौ बीस वर्ष, शारीरिक अवगाहना सात हाथ, बुद्धि मंद, देह रुक्ष, रूप अभद्र होगा । वे कुटिल कामासक्त और अनेक बार के आहारी होगे, ह्रास होते-होते अंत में आयु बीस वर्ष तथा शारीरिक अवगाहना दो हाथ प्रमाण रह जायगी । इस काल में देवागमन नहीं होगा, केवलज्ञानी बलभद्र नारायण और चक्रवर्ती नहीं होंगे । प्रजा दुष्ट होगी, व्रतविहीना और नि:शील होगी । महापुराण 2.136, 3.17-18,76.394-396, पद्मपुराण - 20.91-103, हरिवंशपुराण - 7.95, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.119-121 । इस काल के एक हजार वर्ष बीतने पर कल्किराज का शासन होगा । प्रति एक हजार वर्ष में एक-एक कल्कि होने से बीस कल्कि होंगे । जलमंथन अंतिम कल्कि राजा होगा, अंतिम मुनि-वीरांगज, आर्यिका-सर्वश्री, श्रावक-अग्निल और श्राविका― फल्गुसेना होगी । ये सब अयोध्या के वासी होंगे । इस काल के साढ़े आठ मास शेष रहने पर ये सभी मुनि-आर्यिका श्रावक-श्राविका शरीर त्याग कर कार्तिक मास की अमावस्या के दिन प्रात: वेला में स्वाति नक्षत्र के समय प्रथम स्वर्ग जायेंगे । सन्यास में राजा का नाश होगा और सायं वेला में अग्नि, षट्कर्म, कुल, देश धर्म सभी अपने-अपने विनाश के हेतु प्राप्त कर नष्ट हो जावेंगे । महापुराण 76.397-415, 428-438, उत्सर्पिणी के इस दूसरे काल में मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु बीस वर्ष और ऊँचाई साढ़े तीन हाथ होगी मनुष्य अनाचार का त्याग कर परिमित समय पर आहार लेंगे, भोजन अग्नि पर बनाया जावेगा, भूमि, जल और धान्य की वृद्धि होगी, मैत्री, लज्जा, सत्य, दया, दमन, संतोष, विनय, क्षमा, रागद्वेष की मंदता आदि चारित्र प्रकट होंगे । इसी काल में अनुक्रम से निर्मल बुद्धि के धारक सोलह कुलकर उत्पन्न होंगे, उनमें प्रथम कुलकर का शरीर चार हाथ प्रमाण होगा । कुलकर क्रमश: ये होंगे― कनक, कनकप्रभ, कनकराज, कनकध्वज, कनकपुंगव, नलिन, नलिनप्रभ, नलिनराज, नलिनध्वज, नलिनपुंगव, पद्म, पद्मप्रभ, पद्मराज, पद्मध्वज, पद्मपुंगव और महापद्म । ये सभी बुद्धि और बल से संपन्न होंगे । इस काल का समय इक्कीस हजार वर्ष का होता है । महापुराण 76.460-466