गौण: Difference between revisions
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<span class="GRef"> स्याद्वादमंजरी/7/63/22 </span> <span class="SanskritText">अव्यभिचारी मुख्योऽविकलोऽसाधारणोऽंतरंगश्च। विपरीतो गौणोऽर्थ: सति मुख्ये धी: कथं गौणे।</span> = <span class="HindiText">अव्यभिचारी, अविकल, असाधारण और अंतरंग अर्थ को मुख्य कहते हैं और उससे विपरीत को गौण कहते हैं। मुख्य अर्थ के रहने पर गौण बुद्धि नहीं हो सकती।</span></p> | |||
<div class="HindiText">गौण का लक्षण व मुख्य गौण व्यवस्था–देखें [[ स्याद्वाद#3 | स्याद्वाद - 3]]। | |||
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Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
स्वयंभू स्तोत्र/53 विवक्षितो मुख्यं इतीष्यतेऽन्यो गुणोऽविवक्षो। = जो विवक्षित होता है वह मुख्य कहलाता है, दूसरा जो अविवक्षित होता है वह गौण कहलाता है। ( स्वयंभू स्तोत्र/25 )
स्याद्वादमंजरी/7/63/22 अव्यभिचारी मुख्योऽविकलोऽसाधारणोऽंतरंगश्च। विपरीतो गौणोऽर्थ: सति मुख्ये धी: कथं गौणे। = अव्यभिचारी, अविकल, असाधारण और अंतरंग अर्थ को मुख्य कहते हैं और उससे विपरीत को गौण कहते हैं। मुख्य अर्थ के रहने पर गौण बुद्धि नहीं हो सकती।