दुनर्खा: Difference between revisions
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<p> खरदूषण की पत्नी । यह विद्याधर रावण की बहिन और | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> खरदूषण की पत्नी । यह विद्याधर रावण की बहिन और शंबूक तथा सुंद की जननी थी । इसके पुत्र शंबूक ने जिस सूर्यहास-खड्ग की प्राप्ति के लिए उद्यम किया था, वह शंबूक को प्राप्त न होकर लक्ष्मण को प्राप्त हुआ था । इसी खड्व के परीक्षण में इसका पुत्र शंबूक द्वारा मारा गया था । पुत्र-मरण के कारण विलाप करते हुए एकाएक इसे राम-लक्ष्मण दिखायी दिये जिन्हें देख कामासक्त होकर इसने अपना रूप कन्या का बना लिया । राम को ठगने के लिए अपने माता-पिता को बताकर लज्जा रहित वचन कहे किंतु इसका मनोरथ पूर्ण न हो सका । मनोकामना सिद्ध न होने के कारण इससे अपने पति खरदूषण को युद्ध के लिए प्रेरित किया । खरदूषण ने लक्ष्मण के साथ घनघोर युद्ध किया भी किंतु लक्ष्मण द्वारा चलाये गये सूर्यहास-खड्ग के द्वारा वह मारा गया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_43#38|पद्मपुराण - 43.38-46]], 45.26-28, 61, 88-111, </span>अंत में यह शशिकांता आर्यिका के पास साध्वी हो गयी । इसने घोर तपस्या करके रत्नत्रय की प्राप्ति की । इसी का दूसरा नाम चंद्रनखा था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_43#113|पद्मपुराण - 43.113]], 78.95 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
खरदूषण की पत्नी । यह विद्याधर रावण की बहिन और शंबूक तथा सुंद की जननी थी । इसके पुत्र शंबूक ने जिस सूर्यहास-खड्ग की प्राप्ति के लिए उद्यम किया था, वह शंबूक को प्राप्त न होकर लक्ष्मण को प्राप्त हुआ था । इसी खड्व के परीक्षण में इसका पुत्र शंबूक द्वारा मारा गया था । पुत्र-मरण के कारण विलाप करते हुए एकाएक इसे राम-लक्ष्मण दिखायी दिये जिन्हें देख कामासक्त होकर इसने अपना रूप कन्या का बना लिया । राम को ठगने के लिए अपने माता-पिता को बताकर लज्जा रहित वचन कहे किंतु इसका मनोरथ पूर्ण न हो सका । मनोकामना सिद्ध न होने के कारण इससे अपने पति खरदूषण को युद्ध के लिए प्रेरित किया । खरदूषण ने लक्ष्मण के साथ घनघोर युद्ध किया भी किंतु लक्ष्मण द्वारा चलाये गये सूर्यहास-खड्ग के द्वारा वह मारा गया । पद्मपुराण - 43.38-46, 45.26-28, 61, 88-111, अंत में यह शशिकांता आर्यिका के पास साध्वी हो गयी । इसने घोर तपस्या करके रत्नत्रय की प्राप्ति की । इसी का दूसरा नाम चंद्रनखा था । पद्मपुराण - 43.113, 78.95