श्रुतज्ञान व्रत: Difference between revisions
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<strong>1. लघु विधि</strong> - 12 वर्ष व 8 माह | <strong>1. लघु विधि</strong> - 12 वर्ष व 8 माह पर्यंत सोलह पडिमा के, तीन तीज के, 4 चतुर्थी के, 5 पंचमी के, 6 छठ के, 7 सप्तमी के, 8 अष्टमी के, 9 नवमी के, 10 दशमी के, 11 एकादशी के, 12 द्वादशी के, 13 त्रयोदशी के, 14 चतुर्दशी के, पंद्रह पूर्णिमाओं के और 15 अमावस्याओं के, इस प्रकार कुल 148 उपवास करे। प्रत्येक उपवास के साथ 1 पारणा आवश्यक है। कुल उपवास 148 करे। तथा 'ओं ह्रीं द्वादशांगश्रुतज्ञानाय नम:' इस मंत्र का त्रिकाल जाप करे। (किशन सिंह कृत क्रियाकोष); <span class="GRef">(व्रतविधान संग्रह/पृष्ठ 171)</span>।</p> | ||
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<strong>2. वृहद् विधि</strong> - 6 वर्ष 7 माह | <strong>2. वृहद् विधि</strong> - 6 वर्ष 7 माह पर्यंत निम्न प्रकार उपवास करें। मतिज्ञान के 28 पडिमा के 28 उपवास 28 पारणा; ग्यारह अंगों के 11 एकादशियों के 11 उपवास 11 पारणा; परिकर्म के 2 दोज के 2 उपवास 2 पारणा; 88 सूत्र के 88 अष्टमियों के 88 उपवास 88 पारणा; प्रथमानुयोग का 1 नवमी का 1 उपवास 1 पारणा; 14 पूर्व के 14 चतुर्दशियों के 14 उपवास 14 पारणा; पाँच चूलिका के 5 पंचमियों के 5 उपवास 5 पारणा; अवधिज्ञान के 6 षष्ठियों के 6 उपवास 6 पारणा; मन:पर्यय ज्ञान के 2 चतुर्थी के 2 उपवास 2 पारणा, केवलज्ञान के 1 दशमी का 1 उपवास 1 पारणा। इस प्रकार कुल 158 उपवास करे। तथा 'ओं ह्रीं श्रुतज्ञानाय नम:' इस मंत्र का त्रिकाल जाप करे। <span class="GRef">(व्रत विधान संग्रह/132)</span>; <span class="GRef">(सुदृष्टि तरंगिनी)</span>।</p> | ||
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Latest revision as of 22:35, 17 November 2023
इस व्रत की विधि दो प्रकार से वर्णन की गयी है लघु व वृहद् ।
1. लघु विधि - 12 वर्ष व 8 माह पर्यंत सोलह पडिमा के, तीन तीज के, 4 चतुर्थी के, 5 पंचमी के, 6 छठ के, 7 सप्तमी के, 8 अष्टमी के, 9 नवमी के, 10 दशमी के, 11 एकादशी के, 12 द्वादशी के, 13 त्रयोदशी के, 14 चतुर्दशी के, पंद्रह पूर्णिमाओं के और 15 अमावस्याओं के, इस प्रकार कुल 148 उपवास करे। प्रत्येक उपवास के साथ 1 पारणा आवश्यक है। कुल उपवास 148 करे। तथा 'ओं ह्रीं द्वादशांगश्रुतज्ञानाय नम:' इस मंत्र का त्रिकाल जाप करे। (किशन सिंह कृत क्रियाकोष); (व्रतविधान संग्रह/पृष्ठ 171)।
2. वृहद् विधि - 6 वर्ष 7 माह पर्यंत निम्न प्रकार उपवास करें। मतिज्ञान के 28 पडिमा के 28 उपवास 28 पारणा; ग्यारह अंगों के 11 एकादशियों के 11 उपवास 11 पारणा; परिकर्म के 2 दोज के 2 उपवास 2 पारणा; 88 सूत्र के 88 अष्टमियों के 88 उपवास 88 पारणा; प्रथमानुयोग का 1 नवमी का 1 उपवास 1 पारणा; 14 पूर्व के 14 चतुर्दशियों के 14 उपवास 14 पारणा; पाँच चूलिका के 5 पंचमियों के 5 उपवास 5 पारणा; अवधिज्ञान के 6 षष्ठियों के 6 उपवास 6 पारणा; मन:पर्यय ज्ञान के 2 चतुर्थी के 2 उपवास 2 पारणा, केवलज्ञान के 1 दशमी का 1 उपवास 1 पारणा। इस प्रकार कुल 158 उपवास करे। तथा 'ओं ह्रीं श्रुतज्ञानाय नम:' इस मंत्र का त्रिकाल जाप करे। (व्रत विधान संग्रह/132); (सुदृष्टि तरंगिनी)।