अध्ययन कुशल साधु: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(6 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
< | <span class="GRef">भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 403/592/9</span> <p class="SanskritText">स्वाध्यायं कृत्वा गव्यूतिद्वयं गत्वा गोचरक्षेत्रवसतिं गत्वा तिष्ठति। यत्र विप्रकृष्टोमार्गस्तत्र सूत्रपौरुष्यामर्थ पौरुष्यां वा मंगलं कृत्वा याति एवं स्वाध्यायकुशलता। </p> | ||
<p class=" | <p class="HindiText">= जो मुनि स्वाध्याय कर दो कोस गमन करता है और जहाँ आहार मिलेगा ऐसे क्षेत्र की वसति में जाकर ठहरता है। यदि मार्ग दूर होय तो सूत्रपौरुषी अथवा अर्थ पौरुषी के समय मंगल करके आगे गमन करता है। वह स्वाध्याय कुशल मुनि है।</p> | ||
[[Category:अ]] | |||
[[Category: | |||
<noinclude> | |||
[[ अध्ययन | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ अध्यवधि | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: अ]] | |||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 09:50, 12 December 2022
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 403/592/9
स्वाध्यायं कृत्वा गव्यूतिद्वयं गत्वा गोचरक्षेत्रवसतिं गत्वा तिष्ठति। यत्र विप्रकृष्टोमार्गस्तत्र सूत्रपौरुष्यामर्थ पौरुष्यां वा मंगलं कृत्वा याति एवं स्वाध्यायकुशलता।
= जो मुनि स्वाध्याय कर दो कोस गमन करता है और जहाँ आहार मिलेगा ऐसे क्षेत्र की वसति में जाकर ठहरता है। यदि मार्ग दूर होय तो सूत्रपौरुषी अथवा अर्थ पौरुषी के समय मंगल करके आगे गमन करता है। वह स्वाध्याय कुशल मुनि है।